Book Title: Aksharvigyan Ek Anushilan
Author(s): Mohanlalmuni
Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf

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Page 5
________________ अक्षरविज्ञान : एक अनुशीलन -BIDDIAN CARRIED ण-शान्ति सूचक, आकाश बीजों में प्रधान, शक्ति का स्फोटक । त-आकर्षक बीज, शक्ति का आविष्कारक, सारस्त बीज के साथ सर्वसिद्धिदायक । थ-मंगल साधक, लक्ष्मी बीज का सहयोगी, स्वर मातृकाओं के साथ मिलने पर मोहक । द-कर्मनाश के लिए प्रधान बीज, वशीकरण बीज का जनक । ध-श्रीं और क्लीं बीजों का सहायक, मायाबीज का जनक । न-आत्मसिद्धि का सूचक, जल तत्व का स्रष्टा, मदुतर कार्यों का साधक । प-परमात्मा का दर्शक, जलतत्व के प्राधान्य से युक्त । फ-वायु और जल तत्व युक्त, स्वर और रेफ युक्त होने पर विध्वंसक, फट् की ध्वनि से युक्त होने पर उच्चाटक । ब-अनुस्वार युक्त होने पर समस्त प्रकार के विघ्नों का विघातक । भ- सात्विक कार्यों का निरोधक, परिणत कार्यों का तत्काल साधक, साधना में नाना प्रकार के विघ्नोत्पादक, कटु मधु वर्गों से मिश्रित होने पर अनेक प्रकार के कार्यों के साधक, लक्ष्मीबीजों का विरोधी। म-सिद्धिदायक, लौकिक और पारलौकिक सिद्धियों का प्रदाता । य-शान्ति तथा ध्यान का साधक, मित्र प्राप्ति या किसी अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति के लिए अत्यन्त उपयोगी। र-अग्निबीज, समस्त प्रधान बीजों का जनक, शक्ति का प्रस्फोटक, वर्द्धक । ल-लक्ष्मी प्राप्ति में सहायक, श्री बीज का किटतम सहयोगी और सगोत्री । व-ह, र, और अनुस्वार के संयोग से चमत्कारों का उत्पादक, सारस्वत बीज, भूत-पिशाच, डाकिनी-साकिनी की बाधा का विनाशक, रोग व विपत्तियों का हर्ता स्तम्भक । श-निरर्थक, सामान्य बीजों का जनक, उपेक्षा धर्मयुक्त, शान्ति का पोषक । ष-आह्वान बीजों का जनक, अग्नि स्तम्भक, जल स्तम्भक, सापेक्ष ध्वनि ग्राहक, सहयोग या संयोग द्वारा विलक्षण कार्य साधक, रुद्र बीजों का जनक, भयंकर बीभत्स कार्यों के लिए कार्यसाधक। स–सर्व समीहित साधक, क्लीं बीज का सहयोगी, काम बीज का उत्पादक । ह-शान्ति-पोष्टिक और मांगलिक कार्यों का उत्पादक, आकाश तत्वयुक्त, सभी बीजों का जनक, साधना के लिए परमोपयोगी, स्वतन्त्र और सहयोगापेक्षी लक्ष्मी तथा सन्तान की उत्पत्ति में साधक । संयोजन दुर्लभ है-उपयुक्त ध्वनियों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि मातृका मन्त्र ध्वनियों के स्वर और व्यंजनों के संयोग से ही समस्त बीजाक्षरों की उत्पत्ति हुई है। ये बीजाक्षर ही मन्त्र शक्ति का सामर्थ्य रखते हैं । नीतिकारों ने कहा है "अमंत्रं अक्षरं नास्ति",-कोई भी अक्षर अमंत्र नहीं है। मंत्रशक्ति का मूल आधार अक्षर ही है। ज्ञानाभाव के कारण उस शक्ति का प्रतिफल असम्भाव्य भी हो सकता है परन्तु उस स्थिति में शक्ति UP PRATIMAINMaaaaaaaaaaNBHAJAMANANAJARAawweindainindmJANARDANAGAURANAMIKANIASANAINASIADMAAVacanARAJAMAJAN virmwamimanwarmy- room YNONY mammomemamannaamanian, MVIVITINAY Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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