Book Title: Aksharvigyan Ek Anushilan Author(s): Mohanlalmuni Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf View full book textPage 1
________________ मुनि श्री मोहनलाल जी 'सुजान' (तेरापंथ जैन संघ के विद्वान संत एवं कवि ) अक्षरविज्ञान : एक अनुशीलन वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर भावों को अभिव्यक्त करने का प्रमुख साधन है। मानव जाति के विकास के साथ-साथ वर्णमाला का भी विकास होता आया है । प्रायः ऐतिहासिक मान्यतानुसार वर्णमाला के निर्धारण के पूर्व भावाभिव्यक्ति का संकेत ही एकमात्र साधन था । सांकेतिक भावाभिव्यक्ति का भी बहुत बड़ा महत्व रहा है । मानव सभ्यता के जन्म के पश्चात् ही वर्णमाला का निर्धारण हुआ ऐसा प्रतीत होता है । जैन मान्यतानुसार भगवान श्री ऋषभनाथ ने सर्वप्रथम ब्राह्मी और सुन्दरी नामक अपनी दोनों पुत्रियों को अंकगणित और वर्णमाला की कलायें सिखाई थीं । वे कलायें ही परम्परानुक्रम आगे से आगे विकसित बनीं । विविध लिपियों के माध्यम से उनका विकास हुआ। जैन शास्त्रकारों ने वर्णों को द्रव्यश्रुत कहा है तथा ज्ञानप्राप्ति का मुख्य आधार माना है । आत्म-ज्ञान क्षयोपशमजन्य है । वह अक्षरज्ञान ही प्रयत्न विशेष से आत्मज्ञान के रूप से परिणत हो जाता है । वर्णमाला और मनोवृत्ति - देवनागरी लिपि के अक्षरों के आकार और उच्चारण भी विशेष अर्थ - सूचक तथा भिन्न-भिन्न विशेषतायें लिए होते हैं। सभी अक्षरों की भिन्न-भिन्न मातृका - ध्वनियाँ भी होती हैं । इस वर्णमाला में उच्चारण के अनुरूप ही आकार निर्धारण किया गया है । प्रत्येक अक्षर के आकार में आये हुए विभिन्न प्रकार के घुमाव, मोटापन तथा पतलापन में उच्चारण के साथ समताल का ध्यान भी रखा गया है । इसलिए ही इस वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर विशेष शक्तिसूचक तथा मन्त्ररूप में प्रयुक्त होने वाले अक्षर हैं । मनोवैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर भी इस वर्णमाला के अक्षरों का अपना प्रमुख स्थान है । मानव जीवन की मूल प्रवृत्तियों के साथ इस वर्णमाला सिद्ध होता है । मनुष्य की भावनाओं तथा मूल प्रवृत्तियों का संयोजन माध्यम में ही ठीक-ठीक बन पाता है। क्योंकि शब्दोच्चारण ही मनुष्य की मूल प्रवृत्तियों को व्यवस्थित बनाता है तथा मनोगत भावों का शुद्धिकरण करता है। मनोगत भावों की शुद्धि के लिए मनोवृत्ति को जानना जरूरी है, शब्दों के उच्चारणों की विधि तथा वर्णमाला का रहस्य जानना भी जरूरी है । के स्थायी भावों का आधार - मनुष्य की दृश्य क्रियायें उसके चेतन मन में होती हैं और अदृश्य Jain Education International अक्षरों का बहुत कुछ यथार्थभाव अक्षर के विराट रूप शब्दों के आचार्य प्रव28 श्री आनन्द अभिनन्दन आआनन्द 99 अभिनेत अन्थ www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Vo Dr. PRASTADPage Navigation
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