Book Title: Akhyanak Mani Kosh ke 24 ve Adhikar ka Mulyankan
Author(s): Anilkumar Mehta
Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf

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Page 5
________________ आख्यानकमणिकोश के २४वें अधिकार का मूल्यांकन १६९ कार की कथाओं में कुछ विभक्तियों एवं क्रियाओं के विभिन्न रूपों के प्रयोगों का अभाव है। विशेषणों, कृदन्तों, अव्ययों एवं तद्धितों के पर्याप्त प्रयोग मिलते हैं। इस अधिकार की मूल गाथाओं की व्याख्या संस्कृत भाषा में है। आख्यान प्राकृत भाषा में ही प्रस्तुत किये गये हैं, संस्कृत भाषा के केवल तीन सुभाषित पद्य ही प्राप्त होते हैं। यद्यपि अपभ्रंश भाषा का प्रयोग इन कथाओं में नहीं हुआ है तथापि देशी शब्दों का कहीं-कहीं उपयोग किया गया है। ___ सांस्कृतिक महत्त्व : - इस अधिकार में वर्णित कथाओं में तत्कालीन भौगोलिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक, सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक आदि विवरण प्राप्त होते हैं, इनसे उन कथाओं का सांस्कृतिक महत्त्व स्पष्ट होता है, अतएव उक्त विवरणों को यहाँ संक्षेप में प्रस्तुत करना आवश्यक है। भौगोलिक वर्णन के अन्तर्गत विभिन्न नगरों, ग्रामों, पर्वतों, नदियों, आदि के कुछ प्रसंग आये हैं। इनकी स्थिति एवं ऐतिहासिकता आदि के संबंध में रोचक तथ्य प्राप्त होते हैं।' इनमें गंगा एवं गंधवती नदियों के संक्षिप्त वर्णन मिलते हैं। अंजनपर्वत और विंध्याचलपर्वत के भी उल्लेख हैं साथ ही शिशिर एवं वसंत ऋतु का उल्लेख क्रमशः नंद एवं चित्र-सम्भूत की कथाओं में हुआ है। ऐतिहासिक एवं राजनैतिक संदर्भो में चित्र-सम्भूति-कथा में उल्लिखित सनत्कुमार को हस्तिनापुर का चक्रवर्ती बताया गया है । यह बारह चक्रवर्तियों में से चौथा था।२ वाराणसी, साकेत एवं वसंतपुर के शासकों के नाम क्रमशः शंख, चन्द्रावतंसक और जितशत्रु थे। नाविक नंद का भी अपने छठे जन्म में वाराणसी के राजा के रूप में उत्पन्न होने का प्रसंग आया है।' एक अज्ञात नाम भील-सेनापति, ग्राम-प्रमुख और सैनिकों के उल्लेख हुये हैं। प्रान्तीय व्यवस्था में जनपदों, नगरों, ग्रामों आदि की व्यवस्था थी। न्याय-प्रणाली में अपराधियों को दिये जाने वाले मृत्यु-दण्ड, कारागृह निवास शारीरिक यातना व देश-निष्कासन आदि दण्डों का वर्णन हुआ है साथ ही पुरस्कार देने के प्रावधान भी बताये गये हैं।" इन कथाओं में अनेक सामाजिक तथ्यों का संकलन हुआ है। कर्मगत वर्ण-व्यवस्था के आधार पर वर्गीकृत चार वर्गों में से क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र वर्ण के पात्रों का उल्लेख हुआ है। जनजाति में भील; अन्त्यज जाति में चाण्डाल; कर्मकार जाति में कृषक, खनक, स्वर्णकार, मछुआरे, नाविक आदि का वर्णन है । इन कथाओं से यह भी ज्ञात होता है कि उस समय सामूहिक परिवार में रहने की प्रथा प्रचलित थी। समस्त मानव वर्ग विभिन्न वर्ण एवं जातियों में विभक्त था। नारियां प्रायः कामुक एवं लोभीवृत्ति की होती थीं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष १. आख्यानकमणिकोशवृत्ति के २४वें अधिकार का सानुवाद मूल्यांकन, पृ० ७८, अनिल कुमार मेहता २. आवश्यकचूणि भाग-१, पृ० ४२९. ३. आख्यानकमणिकोशवृत्ति २४।७५.१६ 1. वही २४७६. १२, ७७.७, ७७.२७, ७९.१४. ५. आख्यानकमणिकोशवृत्ति २४।७९. १२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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