Book Title: Akhyanak Mani Kosh ke 24 ve Adhikar ka Mulyankan
Author(s): Anilkumar Mehta
Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf

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Page 4
________________ अमित कुमार मेहता लोभनंदी की कथा का वर्णन आवश्यकचूर्णि में हुआ है । इसमें भी जिनदास को एक निःस्वार्थी श्रावक बतलाया गया है साथ ही जितशत्रु राजा का उल्लेख भी आया है ।' लोभकषाय को लेकर प्राकृत कथा साहित्य में कई कथाओं की रचना हुई है । १६८ काव्यात्मक मूल्यांकन इन कथाओं में अनेक काव्यात्मक तत्त्वों का प्रयोग हुआ है । विभिन्न वस्तु व्यापारों के अन्तर्गत विशेषक, शालिग्राम, बलिचन्द आदि ग्रामों तथा हस्तिनापुर, वाराणसी, क्षितिप्रतिष्ठित, साकेत, उज्जयिनी और वसन्तपुर नामक नगरों के उल्लेख हैं मायादित्य कथा में काशी जनपद का बहुत सुन्दर आलंकारिक शैली में वर्णन हुआ है । प्राकृतिक दृश्यों, ऋतुओं, पर्वतों, नदियों आदि के संक्षिप्त विवरण भी देखने को मिलते हैं । यात्रा के वर्णन भी संक्षेप में ही प्रस्तुत किये गये हैं । पात्रों के चरित्र-चित्रण में मनुष्य वर्ग में अच्छे-बुरे व्यक्तित्व वाले एवं निम्न, मध्यम और उच्च तीनों स्तर के पात्रों को प्रस्तुत किया गया है । पुरुष पात्रों में अरिहमित्र, नंद, चंडभट, चन्द्रावतंसक, चित्र, सम्भूति, नमुचि, गंगादित्य, स्थाणु, जितशत्रु, शिव, शिवभद्र, लोभनंदी, जिनदास एवं धर्मरुचि के चरित्रों पर प्रकाश डाला गया है । नारीपात्रों में अरिहन्न की पत्नी, शिव - शिवभद्र की बहिन और उनकी माँ को उपस्थित किया गया है किन्तु इनके नाम नहीं बताएं गये हैं । इन कथाओं में आर्याछंद का ही प्रयोग हुआ है । अलंकारों की दृष्टि से उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अनुप्रास, लाटानुप्रास आदि अलंकारों के उदाहरण प्राप्त होते हैं । इन कथाओं के संक्षिप्त होने के कारण इनमें रस के विभिन्न प्रयोगों को अवसर नहीं मिला है । कुछ छोटेछोटे संवाद भी प्राप्त होते हैं, इनमें से स्थाण्- मायादित्य, शिव- शिवभद्र, जिनदास - जितशत्रु आदि के संवाद महत्त्वपूर्ण हैं । इसी प्रकार सदाचार, अर्थ, लक्ष्मी, काम, गुप्त बातों की रक्षा और रागादि कषायों को जीतने के विषय से संबंधित संस्कृत एवं प्राकृत भाषा के सुभाषित पद्यों का प्रयोग हुआ है। अर्थ के विषय में प्रयुक्त हुआ एक सुभाषित पद्य द्रष्टव्य है— जाई रूवं विज्जा तिन्नि वि निवडंतु गिरिगुहाविवरे । अत्थो च्चिय परिवड्ढउ जेण गुणा पायडा हुंति ॥ अर्थात् जाति, रूप और विद्या तीनों ही पर्वत की गुफा के छिद्र में भले ही गिर जायें, केवल अर्थ को ही बढ़ाने का प्रयत्न किया जाय क्योंकि उसीसे गुण प्रकट होते हैं । भाषात्मक विश्लेषण प्रस्तुत अधिकार की कथाओं की भाषा महाराष्ट्री प्राकृत है अतः इनमें महाराष्ट्री प्राकृत की लगभग सभी विशेषताएं मिलती हैं और इसीलिये स्वर एवं व्यंजन के परिवर्तन, समीकरण, लोप, आगम, आदि महाराष्ट्री प्राकृत के नियमानुसार ही हैं । यद्यपि व्याकरण के प्रयोगों में वृत्तिकार ने पूर्ण कुशलता का परिचय दिया है तथापि इस अधि १. आवश्यकचूर्णि, भाग -१, पृ० ५२२, ५२५. २. जैन, जगदीशचन्द्र, प्राकृतजैनकथा साहित्य. ३. आख्यानकमणिकोश - वृत्ति, २४।७६.१-५. ४. वही २४ । ७८.३२, २१, २२, ४१।७७. १३, १५/८० के बाद दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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