Book Title: Akhyanak Mani Kosh ke 24 ve Adhikar ka Mulyankan Author(s): Anilkumar Mehta Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf View full book textPage 1
________________ आख्यानकमणिकोश के २४वें अधिकार का मल्यांकन अनिल कुमार मेहता संसार में आज जितने देश हैं उतनी ही संस्कृतियाँ हैं। प्रत्येक संस्कृति एक ममतामयी माँ है और हर देश या राज्य का प्रत्येक प्राणी उस स्नेही माता की संतान है। केवल मनुष्य ने ही अपनी संस्कृति को वास्तविक रूप में पहचान कर उसकी रक्षा समृद्धि के लिए प्रयत्न किए हैं। भारतीय संस्कृति के इतिहास के अध्ययन से हमें रोचक बातें ज्ञात होती हैं। जैन धर्म भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है और इसका प्राकृत भाषा के साथ प्रारम्भ से ही घनिष्ठ सम्बन्ध है और उस समय जन-साधारण में प्रचलित भाषा को प्राकृत कहा जाता था। प्राकृत भाषा के अस्तित्व को वैदिक सूत्रों की रचना के समय में भी स्वीकार किया गया है। अतएव भारतीय संस्कृति के विकास में जैनधर्म एवं प्राकृत भाषा के उल्लेखनीय योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता।। ___ जैन साहित्य के अन्तर्गत प्राकृत भाषा में आगम, टीका, कथा, चरित्र, काव्य, पुराण आदि अनेक रचनायें हैं। यह सम्पूर्ण साहित्य लिखित रूप में महावीर के निर्वाण के पश्चात् का ही है। जैन साहित्य में प्राकृत कथा साहित्य का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। अधिकांश कथा साहित्य धर्म-भावना से प्रेरित होकर ही लिखा गया है। आगम युग से लेकर १६-१७ वीं शताब्दी तक प्राकृत भाषा में अनेक जैन कथाकारों ने सैकड़ों रचनाओं का प्रणयन किया इनमें पादलिप्तसूरि, विमलसूरि, हरिभद्रसूरि, उद्योतनसूरि, कौतूहल कवि, नेमिचन्द्रसूरि, जिनहर्षगणि आदि प्रमुख हैं। वडगच्छीय आचार्य नेमिचन्द्रसूरि, ग्यारहवीं शताब्दी के प्रमुख कथाकार थे। इन्होंने सन् १०७३ से १०८३ के मध्य आख्यानकमणिकोश नामक कथा ग्रन्थ की रचना की। इनकी अन्य चार कृतियों के नाम इस प्रकार हैं : (१) उत्तराध्ययनवृत्ति (२) रत्नचूड-कथा (३) महावीर-चरियं और (४) आत्मबोधकुलक अथवा धर्मोपदेश-कुलक । आख्यानकमणिकोश में मूलतः ५२ गाथाएँ ही हैं। प्रथम गाथा में मंगलाचरण और द्वितीय गाथा में प्रतिज्ञात वस्तु का निर्देश है। शेष ५० गाथाओं में विभिन्न १४६ आख्यानों का संकेत-मात्र है। २० आख्यानों की पुनरावृत्ति हो जाने के कारण वास्तविक कथाएँ १२६ ही हैं। मूल गाथाओं में प्रतिपादित विषय से सम्बन्धित आख्यान के कथानायक या नायिका का नाम ही बताया गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि ये कथाएँ पूर्ववर्ती और समकालीन १. डा० कत्रे, -प्राकृत भाषायें और भारतीय संस्कृति में उनका अवदान पृ. ५९ २. जैन, जगदीशचन्द्र-प्राकृत साहित्य का इतिहास पृ० ३६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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