Book Title: Aganit Pankhona Ashrayrup Ek Vadlo Author(s): Jayant Kothari Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ अगणित पंरवीओना आश्रयरूप एक वडलो जयंत कोठारी अगणित पंखीओने आश्रय आपतो घेघूर वडलो तूटी पड़े तो केवी स्तब्धतानी लागणी थाय ? ओवी लागणी (हरिवल्लभ) भायाणीसाहेबना जवाथी थई रही छे. मारा जेवां अनेक पंखीडां ओ विशाळ वडलानी कोई ने कोई डाळनो आधार मेळवी कलबल ने कूदाकूद करतां हतां. हमणां अक संस्कृतना विद्वान साथे फोन पर वात करवानी थई. में कडं, "अमारा एक मोभी गया." अमणे मारा कथनने तरत सुधार्यु, "अमारा नहीं, आपणा कहो." साची वात छे. भायाणीसाहेब कंई मात्र गुजरातीना विद्वान न हता, संस्कृतना हता अने प्राकृतना पण हता, ओ शिष्ट साहित्यना विद्वान हता अने लोकसाहित्यना पण हता, जैन साहित्यना विद्वान हता अने वैष्णव साहित्य अने संतसाहित्यना पण हता, भाषाशास्त्रना विद्वान हता अने साहित्यशास्त्र ने सौंदर्यशास्त्र-रसशास्त्रना पण हता. विविध विद्याक्षेत्रना माणसो भायाणीसाहेबने पोताना माने ओ स्वाभाविक हतुं. आटली विभिन्न विद्याशाखाओ पर अधिकार स्थापित थवो ओ जेवी तेवी वात नथी. भायाणीसाहेबनी विद्वत्ताने आ बधी शाखाओ फूटी तेना मूळमां छे अमनी अतंद्र ज्ञानझंखना अने ऊंडी संडोवणी. विशाळ ज्ञानाकाशनी संमुख ओ रह्या करे अने आजुबाजुथी, अहींथी-त्यांथी जे कंई प्राप्त थाय ते झीलता रहे. मूळियां ऊंडा उतरे अटले फेलातां होय छे अने उपर डाळो फूटती होय छे तेम भायाणीसाहेबने अभ्यास करतां करतां अने काम करतांकरतां सहजपणे आ बधी डाळो फूटेली छे. बी.ओ., अम.ए.मां मे संस्कृत, अर्धमागधी (प्राकृत) अने भाषाविज्ञानना विद्यार्थी. पीएच.डी. कर्यु अपभ्रंश साहित्यकृति पर अने प्राकृत-अपभ्रंश परत्वे तो ओ आंतरराष्ट्रीय ख्याति धरावता विद्वान बन्या. प्राकृत-अपभ्रंशमांथी जूनी गुजरातीना अभ्यासमां सरवू सहज हतुं. संस्कृतथी गुजराती सुधीनी समग्र भाषा परंपरानी सज्जता भायाणीसाहेबने ऐतिहासिक भाषाविज्ञान अटले व्युत्पत्तिशास्त्र अने भाषास्वरूप अटले व्याकरणना विषयो तरफ खेंची गई अने एमांथी, समकालीन पाश्चात्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10