Book Title: Aganit Pankhona Ashrayrup Ek Vadlo
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगणित पंरवीओना आश्रयरूप एक वडलो जयंत कोठारी अगणित पंखीओने आश्रय आपतो घेघूर वडलो तूटी पड़े तो केवी स्तब्धतानी लागणी थाय ? ओवी लागणी (हरिवल्लभ) भायाणीसाहेबना जवाथी थई रही छे. मारा जेवां अनेक पंखीडां ओ विशाळ वडलानी कोई ने कोई डाळनो आधार मेळवी कलबल ने कूदाकूद करतां हतां. हमणां अक संस्कृतना विद्वान साथे फोन पर वात करवानी थई. में कडं, "अमारा एक मोभी गया." अमणे मारा कथनने तरत सुधार्यु, "अमारा नहीं, आपणा कहो." साची वात छे. भायाणीसाहेब कंई मात्र गुजरातीना विद्वान न हता, संस्कृतना हता अने प्राकृतना पण हता, ओ शिष्ट साहित्यना विद्वान हता अने लोकसाहित्यना पण हता, जैन साहित्यना विद्वान हता अने वैष्णव साहित्य अने संतसाहित्यना पण हता, भाषाशास्त्रना विद्वान हता अने साहित्यशास्त्र ने सौंदर्यशास्त्र-रसशास्त्रना पण हता. विविध विद्याक्षेत्रना माणसो भायाणीसाहेबने पोताना माने ओ स्वाभाविक हतुं. आटली विभिन्न विद्याशाखाओ पर अधिकार स्थापित थवो ओ जेवी तेवी वात नथी. भायाणीसाहेबनी विद्वत्ताने आ बधी शाखाओ फूटी तेना मूळमां छे अमनी अतंद्र ज्ञानझंखना अने ऊंडी संडोवणी. विशाळ ज्ञानाकाशनी संमुख ओ रह्या करे अने आजुबाजुथी, अहींथी-त्यांथी जे कंई प्राप्त थाय ते झीलता रहे. मूळियां ऊंडा उतरे अटले फेलातां होय छे अने उपर डाळो फूटती होय छे तेम भायाणीसाहेबने अभ्यास करतां करतां अने काम करतांकरतां सहजपणे आ बधी डाळो फूटेली छे. बी.ओ., अम.ए.मां मे संस्कृत, अर्धमागधी (प्राकृत) अने भाषाविज्ञानना विद्यार्थी. पीएच.डी. कर्यु अपभ्रंश साहित्यकृति पर अने प्राकृत-अपभ्रंश परत्वे तो ओ आंतरराष्ट्रीय ख्याति धरावता विद्वान बन्या. प्राकृत-अपभ्रंशमांथी जूनी गुजरातीना अभ्यासमां सरवू सहज हतुं. संस्कृतथी गुजराती सुधीनी समग्र भाषा परंपरानी सज्जता भायाणीसाहेबने ऐतिहासिक भाषाविज्ञान अटले व्युत्पत्तिशास्त्र अने भाषास्वरूप अटले व्याकरणना विषयो तरफ खेंची गई अने एमांथी, समकालीन पाश्चात्य Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 238 विद्याप्रवाहोना नियमित संपर्कमा रहेता भायाणीसाहेब भाषाविज्ञानना शैलीविज्ञान वगेरे नूतन फांटाओ सुधी प्रसर्या. आ अद्यतन विद्यारुचिए ज संस्कृत काव्यशास्त्र-रसशास्त्रना आ अभ्यासीने आधुनिक साहित्यविचार अने सौंदर्यशास्त्रना सीमाडा सुधी पहोंचाड्या. पोतांना समय अने समाज साथेनी निसबते भायाणीसाहेबने वर्तमान गुजराती साहित्य विशे विचारता-लखता कर्या. अद्यतनता, वैज्ञानिकता, प्रमाणभूतता, पद्धतिसरता, चोकसाई, लाघव अने विशदता ओ भायाणीसाहेबनां विद्याकार्योनां अलग तरी आवतां प्रमुख लक्षणो. प्राचीन परंपराने लगतां कामो पण पश्चिमना विद्याजगते संपडावेली आधुनिक दृष्टिथी थाय. पोतानी रुचिनां विद्याक्षेत्रोमां थई रहेली कामगीरीनी भायाणीसाहेब पासे छेल्लामां छेल्ली माहिती होय. कोई नQ सरस काम ध्यानमां आवे त्यारे अ रोमांच अनुभवे अने उमळकापूर्वक आपणुं पण अना तरफ ध्यान दोरे. भायाणीसाहेब जेवा तरोताजा-नूतनता अने प्रफुल्लताथी भर्या विद्वान बीजा न मळे. वैज्ञानिकता, प्रमाणभूतता अने चोकसाई माटेनो भायाणीसाहेबनो आग्रह घणो भारे. प्रमाणभूतता अने चोकसाईथी कहीं शकाय अटलुं ज कहेवू. अटकळ-अनुमानना प्रदेशमां धसी जवू नहीं, आप-ख्यालोथी दोराव, नहीं, वाग्मितामां राचवू नहीं. भायाणीसाहेबने नामे केटलांक मोटां कामो छे ज. पण घणा लघुलेखो. ने नानकडी नोंधो पण छे ते आ कारणे. आधुनिक साहित्यविचार जेवा विषयमा आवं खास बन्युं छे. 'मारे एक डगलुं बस थाय' एवी जाणे ओमनी वृत्ति. मुद्दो पूरो कंतातो न लागे, क्यांक अछडतो रही जतो पण लागे, नूतन दृष्टिने कारणे आवां लखाणो पण आपणी दाढे वळगे, साथे कंईक अतृप्ति रही जाय. तेम छतां आ लखाणोनी विचारोत्तेजकतानुं मूल्य ओछु नहीं अने आपणे माटे तो ए संघरी लेवा जेवां. संपूर्णतावादी थवानां जोखमो भायाणीसाहेब जाणता ज होय. भृगुराय अंजारियानो दाखलो तो नजर सामे. भायाणीसाहेबे विद्वत्ता अने व्यवहारबुद्धिनो अजब मेळ बेसाडेलो. पश्चिमना ऊंचां धोरणोथी हमेशा प्रभावित रहेता भायाणीसाहेब आ व्यवहारुबुद्धिने कारणे ज आपणी वास्तविकताओनो स्वीकार करीने पोताना काममा केटलीक वार मर्यादा स्वीकारी लेता ने बीजानां तो Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 239 नानां कदाच पूरतां धोरणसरना नहीं अवां पण कामोने उत्तेजन आपी शकता, वरसो पहेलां गुजरातीना अध्यापकसंघना संमेलनमा 'मध्यकालीन साहित्यकृतिनुं शिक्षण' ओ विषय पर मारे नानकडं वक्तव्य आपवानुं थयेलुं. वक्तव्य पछी भायाणीसाहेबे कडं, "आनो लेख करो." मने मारा वक्तव्य विशे कोई ऊंचो ख्याल न हतो. अटले में पूछ्युं, "आनो लेख करवा जेवो तमने लागे छे?" अमणे कडं, "आ मुद्दाओ कोईए आ रीते कह्या छे खरा ?" में लेख को. 'संस्कृति' जेवा सामयिकमां से छपायो पण खरो. ओ लेखने वीसरावी दे अर्बु घणुं विशेष अने विगते पछीथी मारे मध्यकालीन साहित्य विशे लखवानुं थयुं पण अनां केटलांक प्राथमिक बीज पेला नानकड़ा लेखमां रहेला जोई शकाय छे. भायाणीसाहेबे मारेला धक्काथी आ काम थयु. मारो पहेलो विवेचनलेखसंग्रह 'उपक्रम' प्रकाशित करवा हुं तैयार थयो ते पण भायाणीसाहेबना धक्काथी ज. भायाणीसाहेबमां विद्याप्रीतिजन्य उदारता पण खरी. नवा अभ्यासीओ तरफ से खास वहे. केटलां बधां पुस्तकोने अमनी प्रस्तावना मळी छे ! अमां सामान्य स्तरनां पुस्तको पण न होय अq नहीं पण भायाणीसाहेबे प्रस्तावनालेखननी ओक पोतीकी आवडत केळवी लीधेली. पुस्तकनुं जे कंई जमापासुं होय ओढूंकमां निर्देशे, आगळ काम करवानी दिशा बतावे अने ए विषयमां पोताना तरफथी कंई ने कंई पूर्ति करे. ___अत्यारे आटलुं करीने मूकी दईए, भविष्यमा आगळ काम थशे अq भायाणीसाहेब घणी वार विचारे. अॅथी तो घणां काम करी शक्या अने करावी शक्या. मारी सामे विद्वान तरीके आदर्श भायाणीसाहेबनो ज. ओ मारा विद्यागुरु ओम कहुं तो पण खोटुं नहीं. मध्यकालीन गुजराती साहित्यकोशमा अमे भायाणीसाहेबने पूछीने पाणी पीता अम कहेवाय. अमनी शिस्त अने स्पष्ट समज अमारो मार्ग चोख्खो करी देती. पण मारा उपर भृगुराये हाथ मूक्यो होय के शुं, हुं महत्त्वाकांक्षी थया विना रही शकुं नहीं. जे साधनो सुधी पहोंची शकाय एम होय त्यां सुधी पहोंचीने कामने शक्य तेटली संपूर्णता आपवाना ख्यालमाथी बची शकुं नहीं. 'आरामशोभा रासमाळा मां वृक्षनामोनी ओळख नक्की करवानी कोशिश करुं अने 'मध्यकालीन गुजराती Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 240 शब्दकोश'मां गरबडिया शब्दोनेये छोडुं नहीं - अनी साथे माथाफोड कर्या करूं. भायाणीसाहेब मने रोक लगाव्या करे, पण हुं शानो मार्नु ? पाछो आ माटे जीव तो मारे भायाणीसाहेबनो ज खावानो अने जे प्रेमथी जीव खावा पण दे ! अंते तो जे विद्याना ज जीव ने ? . 'जैन गूर्जर कविओ'नी पुनरावृत्तिनुं विचारातुं हतुं त्यारे भायाणीसाहेब अम ज माने के अनुं पुनर्मुद्रण करवू जोईए, फेरफार करवा जतां मुश्केलीओ ऊभी थाय अने वात हाथमांथी छटकी जाय. आ गंजावर सामग्रीने फरी लखवा जतां तो अमां नवी भूलो दाखल थाय. हुं ओम मार्नु के गुजराती साहित्यकोशनी सामग्री वगेरे जे नवां साधनो हाथवगां थयां छे तेनी मददथी शुद्धि अने आवश्यक पुनर्व्यवस्था करीने ज आ ग्रंथ श्रेणी प्रगट करवी जोईए. में भायाणीसाहेबने कां के मूळ सामग्री फरीने उतार्या वगर सुधारा केम दाखल करवा अने पुनर्व्यवस्था केम करवी ए टु जाणुं छु; केवळ पुनर्मुद्रण करवा साथे हुं संमत नथी. भायाणीसाहेबनी उदारता अवी के मारी पासेथी मारी योजना मुजबनो ज अंदाज मागी अेक संस्थाने अना प्रकाशन माटे भलामण करी. अे संस्थामां तो वात आगळ न चाली, पण पछी श्री महावीर जैन विद्यालये 'जैन गूर्जर कविओ'नी पुनरावृत्ति करवानुं नक्की कर्यु अने अनुं संपादन मने सोप्यु. पुनरावृत्तिमां शुं शुं कर जोईए अना मुद्दा विचारीने हुं फरी भायाणीसाहेब पासे पहोंच्यो. एक पछी एक मुद्दो अमनी समक्ष मूकतो गयो - आ कर जोईए के नहीं अम पूछतो गयो. अने एक पछी एक बधा मुद्दाने भायाणीसाहेब मंजूर करता गया. पुनर्मुद्रणनी ओमनी वात आपोआप ऊडी गई. भायाणीसाहेबनां खरां विद्यानां धोरणो ते तो आ ज, भले संयोगो ओमनी पासे बांधछोड करावता होय. भायाणीसाहेब अटला साचा के 'जैन गुर्जर कविओ'ना पुनरावृत्तिना कामे में नहोतां धार्यां अटलां, दश वर्ष लीधां अने जरूरी मदद मित्रो-स्नेहीओ तरफथी मळी रही त्यारे ओ शक्य बन्यु. ___ भायाणीसाहेबे मध्यकालीन गुजराती कृतिओना जे शब्दकोशो आप्या छे ते सौथी वधारे श्रद्धेय. मारा 'मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश'मां अनो मने मोटो आधार. पण पाछा प्राचीन कृतिने शब्दकोशनी मदद आपवामांथी भायाणीसाहेब आळसी जाय पण खरा. शब्दकोशनी वाट जोवा जतां कृति Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 241 ज रखडी पडे तो ? हुं शब्दकोश आपवानो आग्रही. मारो तो शिक्षकनो जीव अटले एम विचारूं के शब्दकोशनी मदद विना आ कृति आपणे त्यां कोण वांचशे ? (शब्दकोशनी मदद पछीये कोण वांचशे अवो प्रश्न करी शकाय.) भायाणीसाहेब पूरा विद्वान. कोईक अधिकारी नीकळशे ओवी खुमारी ओ राखी शके. अमना घराको तो देशपरदेशमां पथरायेला खरा ने ? सावरकुंडलामां भायाणीसाहेबनी अध्यक्षतामा योजायेली कार्यशिबिरमां शाळाकक्षानो विगतपूर्ण ने व्यवस्थित नवो अभ्यासक्रम घडायो अमां मारी आवी 'मास्तरगीरी'नो घणो हिस्सो हतो. झीणाझीणा मुद्दा विचारीने सभा समक्ष मूकवानी अने चर्चानी गाडी पाटा पर चाले तथा मुकामे पहोंचे ओ जोवानी फरज मारे बजाववानी थई हती. भायाणीसाहेबनी लाक्षणिक खुशमिजाजी अने हळवाश ज केटलीक वार गाडीने पाटा परथी खेडवी नाखती. आ स्थितिनी मजाक करतो अेक दुहो भायाणी साहेबे बनावेलो (अध्यक्षस्थाने बेठांबेठां मे काम पण करता !) : व्याकरणमां पडी वाट, कोठारी कांते घj, (पण) मोदणनो मरडाट, भायाणीये भाग्यो फरे. मोदण अटले दमयंतीबहेन मोदी. ओ शाळाकक्षाओ व्याकरणना प्रयोजन विशे ज प्रश्नोनी फेण ऊचकता. भायाणीसाहेबने नामे संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंशनां केटलांक महत्त्वनां संशोधनो-संपादनो छे. महत्त्वनां कहेवाय ओवा संशोधनलेखो तो घणा छे. पण विषयने अनी सर्व विगतोमां अने सळंगसूत्र रीते छणता अभ्यासग्रंथो आपवानुं भायाणीसाहेबथी झाझं बन्यु नथी. आवां कामोनो कंटाळो अने थाक व्यक्त करतां पण में अमने जोया छे. 'व्युत्पत्तिविचार'मा मुख्यत्वे तो ओमणे पोते पूर्वे संचित करेली सामग्री मूकी देवानी हती, पण त्यारेये अमणे आवी लागणी व्यक्त करेली. भलं थजो गुजरात साहित्य अकादमीरों के अनी फेलोशिपना धक्काथी 'गुजराती भाषानुं ऐतिहासिक व्याकरण' रचायुं अने अणे बे सहायको आप्या तेथी 'मध्यकालीन गुजराती कथाकोशनी रचना थई. अद्यतन दृष्टिनुं गुजराती भाषानुं विस्तृत व्याकरण भायाणीसाहेब ज आपी शके, कदाच अमना मनमां वात पडेली पण हती, पण ओ अमनाथी न Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 242 बन्युं ते न ज बन्युं. गुजरात युनिवर्सिटीमां ओमणे ज घडेला नवा अभ्यासक्रमनी पाठ्यसामग्रीनी एक पोथी रची आपवानी मारी मागणी अक तबक्के ओमणे स्वीकारेली पण पछी ए जवाबदारी ओमणे मने पधरावी दीधी. गुजरात युनिवर्सिटीमा व्याकरणना एक ग्रंथनी योजना थई त्यारेये एक वखत ए माटे संमति आप्या पछी ए खसी गया. अलबत्त, ए माटे बीजां कारणो पण हतां. भायाणीसाहेब पासेथी कंईक वेरविखेर पडेलुं पण घणुंघणुं आपणने मळ्युं छे, पण कोई वार मनमा प्रश्न थाय छे के भायाणीसाहेबनी शक्ति अने सज्जतानो पूरो हिसाब आपणने मळ्यो छे खरो ? आपणे त्यां आ कक्षाना विद्वानने पण घणुंखरुं अकले हाथे ज काम करवानुं होय छे. आपणे अमने संशोधन सहायक आपी शकता नथी. मारुं मन तो ओवी कल्पना करे के भायाणीसाहेब एक विद्याविभागना वडा होय, अमना मार्गदर्शन नीचे एक विद्वानमंडळी काम करती होय अने विद्यानां मोटां ने महत्त्वनां कामोत्यां थतां होय. गमे ते कारणे, पण आ न थई शक्युं तेनो मनमां रंज रहे छे. आपणे कशुक मूल्यवान गुमाव्यानी लागणी थाय छे. ए खरुं के भायाणीसाहेबमां रस- रुचिनुं घणुं वैविध्य हतुं अने संशोधकना कलेवर नीचे बीजुं घणुं संघरायेलुं - दबायेलुं पड्युं हतुं. अ अवारनवार ऊछळी आवे. ओमने त्यां विविध क्षेत्रोना माणसोनी मंडळी जामे, गोष्ठीओ चाले अने अमां भायाणीसाहेब खीले ओमनी कौतुकवृत्ति अत्यंत सतेज, नवा काम, नवा विचार तरफ अ तरत आकर्षाय. अंग्रेजीमांथी नाना नाना अंशोनो अनुवाद करीने मूकवा पण अमनुं मन ललचाई जाय. कोई नवो साहित्यविचार आवे एटले पोते पण अना विशे, भले तारणसंकलननी ते पण एक नानकडो लेख करी नाखे. नानी नानी शब्द नोंधो तो ओमणे केटली बधी लखी छे ! हमणां-हमणां तो अछड़ती कहेवाय ओवी शब्दनोंधो अने सामान्य लागे एवा विचारखंडो आपवा तरफ ए वळी गया हता. मारा जेवाने एम लागे के भायाणीसाहेबे आवां परचुरण कामोमां पोतानां समयशक्तिनो व्यय करवो जोईए खरो ? पोते जे विषयमां मूल्यवान प्रदान करी शके एम छे एमां ज ओमणे अकनिष्ठ ने एकाग्र न थतुं जोईए ? पण संभव छे के भायाणीसाहेबने एमां एकांगिता लागती होय अने ए एमनी पसंदगीनी वस्तु न होय. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 243 भायाणीसाहेबनी विद्वत्तानो एक मोटो गुण ते एमनी स्पष्ट समज अने विशद अभिव्यक्ति. मारा 'भाषा-परिचय अने गुजराती भाषानुं स्वरूप' विशे अभिप्राय आपतां भृगुराय अंजारियाए लखेलुं के "कंईक अंशे विशद रूपे मूक, ए तमारी प्रतिभामां खास छे. भायाणीनी प्रतिभामां जराक ऊलटुं छे." मने आ निरीक्षण यथार्थ न लागे. भायाणीसाहेबनी अने मारी विशदता जुदी कोटिनी छे. ओमनी एक विद्वाननी विशदता छे, मारी एक शिक्षकनी. भृगुराये ज कडं छे तेम, "भायाणीसाहेब पोते वरसेवरसे नवा ख्यालनी स्पष्टताथी नवी नवी विकास-भूमिका रचता जता होय, रस्तो पोते ज खोदे अने पोते ज पछी एना उपर चाले ए स्थितिमां मुकाता होय" त्यां कोई वार कूटता रही जती होय तो ए अनिवार्य ज लेखाय. बाकी भायाणीसाहेब जे कक्षाए लखे छे ए कक्षाए अमना जेटली विशदता सिद्ध करनार बीजो विद्वान में जाण्यो नथी. एमनो अनुवाद-तारण-संकलनरूप लेख पण आ गुणथी अंकित होय. मने याद छे के एक वखते गुजराती विद्वानो संरचनावाद (स्ट्रक्चरालिझम) पर मची पडेला. अमनां लखाणो वांचता हुं भूलो पडी जतो हतो. त्यां भायाणीसाहेबनो एक लेख मारा हाथमां आव्यो अने संरचनावादनो एक नकशो जाणे मळी गयो. साहित्यपरिषद तरफथी अपाता रामप्रसाद बक्षी पारितोषिकमां प्रमोदकुमार पटेल अने हुं एक वखते निर्णायक हता. अमारी सामे सुरेश जोशी, अने भायाणीसाहेब- एम बे पुस्तको छेवटे रह्या. सुरेश जोशीनुं पुस्तक मौलिकतानी छापवाळु हतुं पण एमां अमने विचारप्रवाह खोडंगातो अने अविशद बनतो लाग्यो. भायाणीसाहेबना पुस्तकनी बधी नहीं पण ठीकठीक सामग्री अनुवाद-तारणरूप हती (एनो निर्देश करवानी भायाणी साहेबनी प्रामाणिकता अनन्य, बाकी आपणे त्यां घj उछीनू-पाछी, लीधेलु मौलिकताने नामे खपतुं होय छे), पण एनी विशदता असाधारण हती ने सामग्री अत्यंत उपयोगी तो हती ज. थोडी मथामण पछी अमे भायाणीसाहेबना पुस्तक पर ज पसंदगी उतारी. अद्यतन दृष्टि अने आ स्पष्ट समजे ज सौने भायाणीसाहेब पासे मदद-मार्गदर्शन माटे जता कर्या. भायाणीसाहेबनी बीजाना काममां रस लेवानी Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 244 वृत्ति अने अने सहायभूत थवानी तत्परता तो कोई विद्वानमां जोवा न मळे एवी. विद्वानने तो पोतानी पळेपळनी किंमत होय अने ओ कंईक तेजोद्वेषी पण होय. भायाणीसाहेब तो आपणने आगळ करवामांये भाग भजवे. मारे मारा पीएच.डी. ना विद्यार्थीना विषय के विषयनी रूपरेखा नक्की करवानी होय तो पण अम थाय के चालो, भायाणीसाहेब पासे जईए, ए कंईक नवं सरस सुझाडशे. पछीथी पण काम करता-करतां प्रश्नो ऊभा थाय त्यारे भायाणीसाहेब पासे ज दोडवा. भायाणीसाहेब एटले अध्यापकोना अध्यापक, गुरुओना गुरु. बीजाने सहायरूप थवानी भायाणीसाहेबनी तत्परता तो केवी ! छेल्ला एक वरसथी भायाणीसाहेबनी तबियत लथडी हती अने शक्तिओ कंईक क्षीण थई हती ते दरम्याननो ज एक दाखलो आपुं. एक मध्यकालीन कृतिमा 'कोइल विखवयणी' (कोयल विष-वचनी) एवी पंक्ति आवी. कोयल तो मधुर वचन बोलनारी. प्रश्न थयो के 'विष' शब्दनो 'मधुर' अर्थ होई शके? विरुद्ध अर्थमां शब्द वपरायो होय एवी कोईक परंपरा होवानुं अने मारा 'मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश'मां एवो कोई शब्द आव्यो होवानुं स्मरण थयु. ए कोशमां त्यारे तो आवो कोई शब्द जड्यो नहीं. पण मनमां थयु के ए वखते आवी परंपरानी माहिती मने भायाणीसाहेब पासेथी ज मळी होय. में भायाणीसाहेबने फोन को पण एमने आq कई याद न आव्युं. पछी मारे एक दिवस मोटा दीकराने त्यां जवान थयु. बीजे दिवसे त्यां भायाणीसाहेबनो फोन आव्यो (मारे आ घेरथी फोननंबर मेळवीने ज तो !). "विष'ने माटे 'मधुर' शब्द- एवा केटलाक प्रयोगनी मोंध लेतो एक श्लोक एमने मळी गयो हतो ते कह्यो. मने थयुं के वाह, मारी धारणा साची पडी. त्यां तो बेएक दिवसे पार्छ भायाणीसाहेब पोस्टकार्ड आव्यु- तमारी ए पंक्ति मने लखी मोकलो. में पंक्ति लखी मोकली एटले एमणे मने लख्यु के परंपरा तो "विष' वगेरेने माटे 'मधुर' शब्द वापरवानी छे, जेमां हेतु ए पदार्थनी अनिष्टताने ढांकवानो होय. 'मधुर' माटे "विष' शब्द वापरवानी परंपरा नथी, एनो कोई हेतु पण होई न शके. एमणे मारी पंक्तिनो जुदो अर्थ करवानुं पसंद कर्यु. वसंतवर्णनना संदर्भमां भायाणी साहेबे सूचवेलो अर्थ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 245 संगत थतो नहोतो एटले ए हुं न स्वीकारी शक्यो, परंतु एमणे उठावेलो मुद्दो तो एकदम साचो हतो. में फरीने जोयुं तो मारा 'मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश'मां 'मधुर' शब्द ज 'विष'ना अर्थमां हतो. हुं समजी गयो के मारा संदर्भमां "विष'नो 'मधुर' अर्थ ज बंध बेसतो होय तो पण एने माटे आधार शोधवानो बाकी ज रहे अने जे अर्थ हु आपवा इच्छु तोये मारे ए प्रश्नार्थ साथे ज आपवो जोईए. भायाणी साहेब तो एक अभरे भर्यो भंडार. ए भंडारने लूंटवामां में कदी संकोच अनुभव्यो नथी अने एणे पोताने लूटावा देवामां नहीं. मारी तो चालु कामे फोननी घंटडी रणकावीने पूछी लेवानी आदतने भायाणीसाहेबने पण एमना चालु कामे ज जवाब आपवानो थतो हशे. कोईवार तो खांखांखोळां करीने जवाब आपे. बी.ए.नो गुजराती व्याकरणनो नवो अभ्यासक्रम भणाववानुं में माथे लीधुं त्यारे माराथी थई शके ते तैयारी करीने में भायाणी साहेब साथे नियमित बेठको करी. अनुं पुस्तक हुं लखुं ए जोई आपवानी जवाबदारी तो एमणे पोते ज स्वीकारी हती. एमणे जोई लीधा पछी (ची.ना.) पटेल साहेबे आरंभना प्रकरणमा एक प्रश्न उठाव्यो अने भायाणीसाहेबे एनुं समर्थन कर्यु. में आखी सामग्री फरी वार कठोर परीक्षणपूर्वक जोई जवानी जवाबदारी भायाणीसाहेब पर नाखी अने ए पण एमणे बराबर पार पाडी. भायाणीसाहेब सामे बेसवा माटे तो आ पछी हुँ भाषाविज्ञानना डिप्लोमा अभ्यासक्रमनो विद्यार्थी बन्यो. 'मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश'ना मारा सघळा परिश्रम पछी मूंझवणभरेला रहेता शब्दो माटे एकाद वरस सुधी भायाणीसाहेब साथे केटली बधी बेठको करी ! छेल्ले-छेल्ले एमनी नादुरस्त तबियत वेळा पण 'स्थूलभद्र चंद्रायणि' जेवी उत्तम कृतिना केटलाक शब्दार्थो माटे भायाणीसाहेबने तकलीफ आपवानी लालच हुं रोकी शक्यो नहीं अने बे दिवस बे-बे कलाक एमनी साथे बेठो. फारसी शब्दोना प्रचुर उपयोगवाळी आ कृतिनो घणी साफसूफी पछी बचेलो आ कूथो हतो. भायाणीसाहेब, एमणे पोते पण स्वीकार्यु तेम, खास कशा उकेल आपी शक्या नहीं. पण एक स्थानने पण भायाणीसाहेब एमनी आगवी सूझथी उघाडी आपे ए मारा जेवाने तो लाख रूपियानी लोटरी लाग्या जेवू लागे. एबुं तो बन्युं ज. कृतिनी Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 246 एक पंक्ति हती- 'भोगी भमर कमलह कोशि, थूलभद्र लीना त्यंब/त्युंबर कोशि.' बे प्राप्त हस्तप्रतोमां मळता 'त्यंबर/त्युंबर' शब्दनो अर्थ बेसाडवा कोशोमां हुं घj भटकेलो, पण व्यर्थ. भायाणीसाहेबना हाथमां आ पंक्ति मूकी अने एक क्षण-एक ज क्षण - विचार करीने एमणे का, 'व्यंबर". 'व्यंबर' एटले निर्वस्त्र. आबाद बेसी गयु- "स्थूलभद्र निर्वस्त्र कोशामां लपाया." बन्ने प्रतोमा मळतो पाठ सुधारवानो थतो हतो, पण एवं आ कृतिमा अन्यत्र पण पूरी आधारभूत रीते करवानुं थयुं हतुं- 'चालिष्ट'- 'बालिष्ट' ('ओशीका') करवानुं थयुं हतुं. भायाणीसाहेबने नकामी तकलीफ आप्यानो डंख मने न रह्यो. भायाणीसाहेब दिवंगत थयाना समाचार आव्या पछी बीजे ज दिवसे एक कृतिमां एमने पूछवा जेवो शब्द आव्यो. पण आ पंखीने हवे ए वडलानी डाळनो आश्रय नहोतो ओनो एक विषादभर्यो अहेसास थयो. ए अहेसास हवे जिंदगीभर थतो रहेवानो. 19 नवेम्बर 2000 (नवनीत-समर्पणमांथी साभार)