Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohe Part 01
Author(s): Manikyasagarsuri,
Publisher: Shantichandra C Zaveri
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________________ // 292 // IN प्रस्तावे चैव तीर्थस्य, ग्रन्थेऽन्यत्र तथेक्ष्यते // 16 // यथा भव्यासुभिर्नम्या जिनानामाकृतिस्तथा। न स्यात्तेषां I आगमो KI परिणामो, गिरावत्रापि तत्तया // 17 // इत्यत्र स्थावरा धन्याः, सत्यमेवेति भाषितं / तावतामपि भव्यत्वे, विरोधो नागमा- INI द्वारककृति गिरिस्तवः Hध्वनि // 18 // किश्चान्यत्र भवेनीर्थ, ऋषिकल्याणकादिना / क्षेत्रानुभावतस्त्विहा-भूवन्कल्याणकानि वै // 19 // तेनाऽयं मुनिना सन्दोहे म तीर्थ-रूपः प्रोक्तोऽचलोऽखिलः / ततो न पश्यतां तं स्या-दुर्लभासन्नभव्यता // 20 // या त्वत्र स्वस्य भव्यान्य-त्वाशङ्का - स्तवने कृता। न सा स्वभाववृद्धथुत्था, सूर्याभस्येव हानिकृत् // 31 // पूर्वाणां नवनवतिरत्रागतवाजिनो युगादीशः। फाल्गुनशुक्लाष्टम्यां तदिदं तीर्थ नमामि सदा // 22 // इपुशतलक्षैर्मुनिभिः परिवृतः पुण्डरीकगणनाथः / श्रुत्वा सगणस्य मोक्षं जिनास्थितोऽत्राऽऽप निर्वाणम् // 23 // एवमन्येपि गणिनोऽत्राजग्मुलेभिरे च निर्वाणम् / इतरस्थानात्तदत्र सिद्धा मुनयोऽप्य नन्तगुणाः // 24 // नमस्यं देवेशैः सह यतिगभक्तिमनसा, समभ्यर्च्य नित्यं निजजननसाफल्यविधये / उपास्य AI श्राद्धानां निबिडतरकर्मापहतये, उपस्पृश्येयं तच्चरमभववदोषदलनम् // 25 // Brememerammermermirmirmermomens { आगमोद्दारककृतिसन्दोहे प्रथमो विभागः / समाप्तः لطالمصطلحال البلدانعان غدا لحالتحالنا لينا ديان للطة - // 2924

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