Book Title: Agam ka Vyakhya Sahitya Author(s): Udaychandra Jain Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf View full book textPage 6
________________ आगम का व्याख्यासाहित्य | १६३ आराधनानियुक्ति-अाराधना पताका के नाम से भी इस ग्रंथ को जाना जाता है । वट्टकेर के मूलाचार में इसका उल्लेख है । ऋषिभाषिता-प्रत्येकबुद्धों द्वारा प्रतिपादित होने के कारण इस ग्रन्थ को ऋषि-भाषिता कहा गया है। इसमें चवालीस प्रत्येकबुद्धों के जीवन को प्रस्तुत किया गया है । सूर्यप्रज्ञप्ति-प्राचार्य भद्रबाहु ने सूर्यप्रज्ञप्ति ग्रन्थ पर नियुक्ति लिखी है। इसमें ज्योतिष, गणित आदि के विषयों का विवेचन हुअा है । भाष्य-आगमग्रन्थों पर प्राकृत में भाष्य भी लिखे गए हैं। भाष्य-शैली पद्यात्मक है। संघदास गणि, जिनभद्र क्षमाश्रमण भाष्यकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। प्रागमों पर भाष्य विक्रम सं. की सातवीं शती में लिखे गए हैं। बृहतकल्पभाष्य, व्यवहार भाष्य, निशीथभाष्य विशेषावाश्यक भाष्य, पंचकल्प, जीतकल्प और लघुभाष्य ये सात भाष्य हैं। इनमें बृहतकल्प, व्यवहार, और निशीथ ये तीन भाष्य विशालकाय हैं। भाष्यग्रन्थों का परिचय बृहत्कल्पभाष्य-इस भाष्य में साधु-जीवन के प्राचार-विचार पर सम्यक् प्रकाश डाला गया है । विचारभूमि, विहारभूमि और आर्यक्षेत्र की व्याख्या मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत की गई है। “विणासधम्मीसु हि किं ममत्तं" विनाश---शील वस्तुओं पर ममत्व क्यों ? "जं इच्छसि अप्पणत्तो, जं च ण इच्छसि अप्पणत्तो--जैसा व्यवहार तुम दूसरों से चाहते हो, वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो।" ऐसे कई उपदेशपूर्ण पदों का कथन इस ग्रन्थ की विशेषता है । व्यवहारभाष्य-साधु-साध्वियों के प्राचार, विचार, तप, संयम, साधना, प्रायश्चित्त एवं इनकी विभिन्न चर्वानों का उल्लेख इस ग्रन्थ में विस्तार से हुआ है। इस पर मलयगिरि ने विवरणिका लिखी है। ___ इस व्यवहारभाष्य में रक्षित, आर्य कालक, सातवाहन, प्रद्योत और चाणक्य इनका उल्लेख भी पाया है। निशीथभाष्य-"जइ सव्वसो अभावो रागादीणं हवेज्ज णिद्दोसो।" यदि साधक के जीवन में किसी प्रकार का राग-द्वेष नहीं है, तो वह साधक निर्दोष साधक है । इसी उद्देश्य को सामने रखकर भाष्यकार ने साधक का परिचय दिया है। इतिहास, संस्कृति, धर्म, दर्शन, ज्योतिष एवं विभिन्न भाषाओं का बोध इस विशालकाय ग्रन्थ के माध्यम से हो जाता है। निग्रंथ, निग्रंथी, संघ के कर्तव्य और अकर्तव्य आदि का विवेचन भी भाष्यकार ने किया है। प्रसंगवश विभिन्न लोक-कथाएं, समाज-व्यवस्था, अर्थ-व्यवस्था राजनीति-व्यवस्था का भी समावेश हो गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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