Book Title: Agam ka Adhyayan kyo Author(s): Mainasundariji Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 4
________________ जिनवाणी- जैनागम - साहित्य विशेषाङ्क अर्थात् ज्ञान का फल त्याग है. विरति है । तत्त्वज्ञान से चारित्र निर्मल होता है। यह सब बातें आगम वाणी से ही जानी जाती है। अतः मुझे अवश्य ही स्वाध्याय करना चाहिए। 4. वुग्गहविमोयण ट्टयाए- जो व्यक्ति हठाग्रही है। मिथ्यानिवेश से विवाद पर अड़ा हुआ है। उसे परास्त करने के लिए तथा उसे कदाग्रह से हटाने के लिए श्रुत अध्ययन करना जरूरी है। आगम के बल पर ही उसे मिथ्यात्व से हटाकर सम्यग्दर्शन से जोड़ा जा सकता हैं। इस प्रकार आगम ज्ञान साधक का महान् उपकार करता है। 5. अहत्थे वा भावे जाणिस्सामि त्ति कट्टु- पदार्थों के स्वरूप को जानने के लिए और द्रव्यों की गुण-पर्यायों को जानने के लिए आगमज्ञान अति आवश्यक है। ऐसा जान कर शिष्य गुरु से आगम ज्ञान पढ़ता है । I 82 आगमज्ञान को पढ़ने से जीवन में अतिशय ज्ञान-दर्शन की प्राप्ति होती है। ज्ञानावरणीय कर्म के बंध के कारण हैं, उनसे हमें हमेशा दूर रहना चाहिए तथा उन बन्ध के कारणों को अमल में नहीं लाना चाहिए । ज्ञान-प्राप्ति के विषय में स्थानांग सूत्र के चौथे स्थान में अच्छे ढंग से समझाया गया है: "चउहि ठाणेहिं निग्गन्थाण वा निग्गन्धीण वा अतिसेसे णाणदसंणे समुपज्जिकामे समुपज्जेज्जा तंजहा- 1. इत्थीकहं, भत्तकहं, देसकहं, रायकहं नो कहेता भवति 2. विवेगेण विउसग्गेणं सम्ममप्पाणं भावेत्ता भवति 3. पुव्वरत्तावरत - कालसमयसि धम्मजागरियं जागरिता भवति 4. फासुस्स एसणिज्जस्स उंछस्स सामुदाणियस्य सम्मं गवेसिया भवति इच्चेतेहिं चउहिं ठाणेहिं निग्गन्थाण वा निग्गन्धीण वा जाव समुपज्जेज्जा (स्थानांग 4 ) अर्थात् साधु-साध्वी को अतिशय ज्ञानदर्शन प्राप्त करने के लिए चार कार्य करने चाहिए १. सर्वप्रथम कारण है चार प्रकार की विकथाएं नहीं करे। क्योंकि विकथाएं इस जीवात्मा को आत्मधर्म से विरुद्ध ले जाने का कार्य करती हैं। अतः स्त्रीकथा, भक्तकथा, देश कथा और राजकथा से बचकर चले । २. विवेक और व्युत्सर्ग के द्वारा निरन्तर आत्म-चिन्तन करता हुआ साधक अतिशय ज्ञान प्राप्त करता है। वस्त्र, पात्र, कंबल और शरीर से मोह ममत्व छोड़ता हुआ और कायोत्सर्ग करता हुआ अतिशय आगम ज्ञान प्राप्त करता है। विवेक के अभाव में छोटी सी गलती भी भयंकर विकराल रूप ले लेती है। जैसे बाहुबलि के हृदय में रहा हुआ अहं का विकार केवलज्ञान दिलाने में फौलादी दीवार बन गया। जिस दिन छोटे दीक्षित भाइयों को वन्दन का संकल्प जगा, उसी क्षण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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