Book Title: Agam ka Adhyayan kyo Author(s): Mainasundariji Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 5
________________ आगम का अध्ययन क्यों ? . ..... 83 केवलज्ञान केवलदर्शन हो गया। ३. केवलज्ञान की प्राप्ति का तीसरा साधन है—धर्म जागरण। एकान्त शान्त वातावरण में बैठकर धर्म जागरण करता हुआ साधक अतिशय ज्ञान प्राप्त करता है। प्राय:कर रात्रि का समय भी इसके लिए उपयुक्त है। इस समय मस्तिष्क शान्त रहता है। विचारों की आकुलताव्याकुलता एव मन के भावों की धमाचौकड़ी समाप्त हो जाती है। रात को आगम ज्ञान ढग से हो सकता है। ४. ज्ञान-प्राप्ति के साधनों में चौथा स्थान है- शुद्ध, पवित्र एवं बयालीस दोष विवर्जित निर्दोष आहार। क्योंकि शुद्ध भोजन हमारी बुद्धि को निर्मल रखना है। कहा भी है-. "जैसा अन्नजल खाइए, वैसा ही मन होय । जैसा पानी पीजिए. वैसी ही वाणी होय ।।" आग्मज्ञान का गहन ज्ञात्ता बनना है तो दूषित आहार का त्याग करना अनिवार्य होगा। क्योंकि वह दूषित आहार हमारी बुद्धि और मस्तिष्क को दूषित करता है, अत: शुद्ध आहार करना चाहिए। आगम अध्ययन से जीवन को दृष्टि एवं प्रकाश मिलता है स्वाध्याय अज्ञान एवं मिथ्यात्व रूप अन्धकार से व्याप्त जीवन को आलोकित करने के लिए जगमगाता दीपक है। जिसके दिव्य प्रकाश में हम हेय (छोड़ने योग्य), ज्ञेय(जानने योग्य) और उपादेय (ग्रहण करने योग्य) का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। स्वाध्याय को हम संजीवनी जड़ी भी कह सकते है। जो परते हुए में भी जीवन का संचार करती है। स्वाध्याय से ज्ञान रूपी जीवन मिलता है। इसलिए शास्त्रकारों ने ज्ञान को प्राथमिकता देते हुए कहा है ___ "पढ़मं नाणं तओ दया।' अर्थात् पहले ज्ञान और फिर क्रिया। स्वाध्याय के द्वारा ही मन के विकारों को जीता जा सकता है। कषायों का शमन, इन्द्रियों का दमन भी इसी से होता है अतः श्रुतवागी में कहा गया "चउकालं सज्झायं करेह ।” चारों काल हमें स्वाध्याय करना चाहिए। समाचारी अध्ययन में कहा है "पढ़ म पोरिसिं सज्झाय, बीयं झाण झियायइ। तइयाए भिक्खायरिय.पुणो चउत्थी सज्झायं । (उत्तरा. 26.12) अर्थात् प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करे, दूसरे प्रहर में पठित विषय पर चिन्तनं करे, तीसरे प्रहर में भिक्षाचरो करे और फिर चौथे प्रहर में स्वाध्याय में लग जाय। परन्तु आज तो हमारी व्यवस्था बिगड़ गई है। "पहले पहर में चाय पानी, दूसरे पहर में माल पानी। ती पहर में सोडतानी, चौथे प्रहर में घूडधानी।" हमारे पूर्वज तो चारों काल स्वाध्याय करके अपने जीवन को पावन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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