Book Title: Agam ka Adhyayan kyo
Author(s): Mainasundariji
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 3
________________ आगम का अध्ययन क्यों ? अर्थात् करोड़ों जन्मों के संचित पापकर्म तप के माध्यम से नष्ट किए जाते हैं, ऐसा सोचकर गुरु शिष्य को शास्त्र पढ़ाता है कि मेरा शिष्य भी इस प्रकार कर्मो की महान निर्जरा करेगा। 4. सुत्तेवा मे पज्जवया भविस्सइ- गुरु शिष्य को ज्ञान इस प्रयोजन से भी देता है कि इनको पढ़ाने से मेरा ज्ञान भी बढ़ेगा। प्रत्येक शिक्षाशास्त्री भी इस बात को स्वीकार करता है कि दूसरों को पढ़ाने से अपना ज्ञान मजबूत होता है। क्योंकि यह निश्चित मत है कि "विद्या' बांटने से और अधिक बढ़ती है, अधिक पुष्ट भी होती है। 5. सुत्तस्स वा अवोच्छित्तिणयठ्याए- शिष्य को पढ़ाने के पीछे गुरुजनों का यह प्रयोजन भी रहता है कि शास्त्र पढ़ाने की परिपाटी छिन्न-भिन्न न हो जाय। शास्त्र पढ़ने की शृंखला टूट न जाय । लम्बे समय तक शिष्यों में ज्ञान की अजस्र धारा निरन्तर प्रवाहित होती रहे और शिष्य समुदाय उस ज्ञानगंगा में डुबकियाँ लगाकर स्वयं को पावन करता रहे. इसी उद्देश्य से शिष्य को गुरु ज्ञान सिखाते हैं। पढ़ाने की जिसमें योग्यता होगी, वही आगम ज्ञान पढ़ा सकता है। आगमज्ञान के ज्ञाता, विद्वान साधु-साध्वी भी होते हैं, तो श्रावक-श्राविका भी कहीं-कहीं एवं कभी-कभी ज्ञान के अच्छे ज्ञाता मिल सकते हैं। दोनों का पूरा पूरा कर्तव्य है कि वे संघहित को ध्यान में रखकर अल्पज्ञों को आगम ज्ञान पढ़ाकर शासन की सेवा करें। इससे श्रुत सेवा, स्वयं की सेवा एवं भगवान की सेवा-भक्ति होगी। अब यह जानना भी बहुत जरूरी है कि शिष्य आगम क्यों पढ़ता है? उसके पढ़ने के पीछे क्या हेतु है? क्योंकि बिना प्रयोजन किसी कार्य में प्रवृत्ति नहीं होती। जब शास्त्रों के पन्ने उठाकर देखते हैं, तब पांच कारण नजर आते हैं:1. नाणयाए- स्वाध्याय करने से ज्ञान तो बढ़ता ही है, किन्तु अपनी उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाने के लिए तथा आगगों का रहस्य जानने के लिए शिष्य शास्त्र पढ़ता है। 2. दंसणठ्याए- स्वाध्याय करने से मुझे ज्ञान के साथ-साथ अपना सम्यादर्शन मजबूत करने का सुअवसर मिलेगा। तत्त्वार्थ ज्ञान होने पर समकित शुद्ध रहेगी। वीतराग भगवन्तों की वाणी ही मेरा आत्म कल्याण करेगी। भले ही आगम की बहुत सी बातें मेरी समझ में आए अथवा न आए, फिर भी समझने की पूरी-पूरी कोशिश करूंगा। क्योंकि यह स्वाध्याय मेरे लिए महान कल्याणकर है। 3. चरित्तऴ्याए- आगम के एक-एक पद, चरण एवं गाथा चारित्र धर्म को विशुद्ध करने वाली है। कहा भी है .. "ज्ञानस्य फल विरतिः" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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