Book Title: Agam Tulya Granth ki Pramanikta Ka Mulyankan Author(s): N L Jain Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf View full book textPage 3
________________ २ ] ( ब ) उपलब्ध प्रत्यक्ष, अपूर्णं या परोक्ष सूचनाओं के आधार पर परम्परापोषण का प्रयत्न । में ये ही कारण प्रामाणिकता में प्रश्नचिह्न लगाते हैं। फिर यह प्रश्न तो रह ही जाता है कि कौन-सी नये युग सूची प्रमाण है ? ३. केवली ५. भुतकेवली ११. दशपूर्वधारी ५. एकादशांगधारी ४. १०, ९, ८ अंगधारों ४. एकांगधारी १. गुणधर २. धरसेन ३. पुष्पदंत ४. भूतबलि सारणी १. धवला और प्राकृत पट्टावली की ६८३ वर्ष-परम्परा धवला परम्परा ६२ वर्ष ९. कुंदकुंद ६. उमास्वाति ७. वर ८. शिवार्य ९. स्वामिकुमार ( कार्तिकेय ) Jain Education International १००, १८३ " २२० " - आगम-तुल्य ग्रन्थों की प्रामाणिकता का मूल्यांकन ९७ ११८ ६८३ ६८३ मूलाचार' के अनुसार, आचार्य शिष्यानुग्रह, धर्म एवं मर्यादाओं का उपदेश, संघ- प्रवर्तन एवं गण-परिरक्षण का कार्य करते हैं । अन्तिम दो कार्यों के लिये एतिहासिक एवं जीवन परम्परा का ग्रथन आवश्यक है । पर प्रारम्भ के प्रायः सभी प्रमुख आचार्यों का जीवनवृत्त अनुमानतः ही निष्कर्षित है । आत्म- हितैषियों के लिये इसका महत्व न भी माना जावे, तो भी परम्परा या ज्ञानविकास की क्रमिकधारा और उसके तुलनात्मक अध्ययन के लिये यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है । प्राचीन भारतीय संस्कृति की इस इतिहास - निरपेक्षता की वृति को गुण माना जाय या दोष यह विचारणीय है। एक ओर हमें 'अज्ञातकुलशीलस्य, वासो देयो न कस्यचित्' की सूक्ति पढाई जाती है, दूनरी ओर हमें ऐसे ही सभी आचार्यों को प्रमाण मानने की धारणा दी जाती है । यह और ऐसी ही अन्य परस्पर विरोधी मान्यताओं ने हमारी बहुत हानि की है । उदाहरणार्थ, शास्त्री द्वारा समीक्षित विभिन्न आचार्यों के काल-विचार के आधार पर प्राय: समी प्राचीन आचार्य समसामयिक सिद्ध होते हैं : ११४ ई० पू० ५०-१०० ई० ६० - १०६ ई० ७६-१३६ ई० ८१ - १६५ ई० १००-१८० ई० प्राकृत पट्टावली परम्परा ६२ वर्ष १०० १८३, १२३ " ९७ ११८ प्रथम सदी For Private & Personal Use Only 12 ( पांच एकांगधारी ) " 31 १-२ सदी १-२ सदी २ सदी प्रथम सदी प्रथम सदी २-३ री सदी सौराष्ट्र, महाराष्ट्र आंध्र, महाराष्ट्र आंध्र तामिलनाडु "" इनमें गुणधर, धरसेन, पुष्पदंत और भूतबलि का पूर्वापर्यं और समय तो पर्याप्त यथार्थता से अनुमानित होता है । कुंदकुंद और उमास्वाति के समय पर पर्याप्त चर्चायें मिलती हैं। यदि इन्हें महावीर के ६८३ वर्ष बाद ही मानें, १३ ,, मथुरा गुजरात www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11