Book Title: Agam Suttani Satikam Part 17 Nishitha
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 19
________________ १६ निशीथ-छेदसूत्रम् -३-१४ / ८६७ [भा. ४५४९ ] दुविधा छिन्नमच्छिन्ना, लहुओ पडिस्सुणंते य । गुरुवयणदूरे तत्थ उ, हिते गहणे य जं भणियं ॥ चू- अभिग्गही वावारिया वा भणिया-गच्छह परिमाणपरिच्छिण्णणि वीसं पाताणि आणेह, अच्छिन्नाणि वा संदिट्ठा “जत्तिए लभह त्ति तत्तिए आनेह" त्ति । एवं गच्छंते कोति भणेज्ज “ममं पि पादं आणेह’”त्ति । एवं भणंतस्स मासलहुं । आणेहामि त्ति जो पडिसुणेति तस्स वि मासलहुं । एत्थ इमा विही - जस्स पाएण कज्जं सो गुरुं विन्नवेति, जो य भण्णते तेन वि गुरू पुच्छियव्वो । अह दूरं गताणं को वि भणेज्ज - मे पातं आणेह तत्थ उ साधारणं । गुरुवयणं ठवेंति - “गिण्हिस्सामो अम्हे पायं तस्स उ गुरू जाणगा भविस्संतीत्यर्थः । " गतेसु भायणभूमिं गहिएसु भायणेसु गहणकाले वा भायणाणं जं विघाणं भणियं पडिलेहणादिकं तं सव्वं कायव्वं ॥ एती चैव गाहाए इमं वक्खाणं, “छिन्नं” ति अस्य व्याख्याuse वीसं पाते, तिन्नि पगारा य तत्थ अतिरेगे । तत्थेव भणति एक्को, बितिओ पंथम्म दङ्कणं ।। [भा. ४५५० ] चू- वीसाए अतिरित्तस्स इमे तिन्नि पगारा - जे ते भायणाणं गंतुकामा ते तत्थेव वसहीते ठिवा अनिग्गए । एगो भणति - "ममं पि पायं आणेह" । बितिओ वसहीए निग्गए पंथट्ठि आसणे दूरे वा भणति - "ममं पि पादं आणेह" त्ति ॥ [भा. ४५५१] ततिओ लक्खणजुत्तं, अहियं वीसाए ते सयं गेहे । एए तिन्नि विगप्पा, हवंति अतिरेगपातस्स ।। चू-वीसाए गाहए लुसक्खणं पादं लद्धं, तं सयमेव गेण्हति तति, तिन्नि पगारा अतिरेगपादस्स ।। "तत्थे भर्णाति एक्को "त्ति अस्य व्याख्या [भा. ४५५२] आयरिए भणाहि तुमं, लज्जालुस्स व भांति आयरिए । नाऊण व सढभावं, नेच्छंति धरा भवे लहुतो ॥ च - ते पायपट्टितै एगो साधू भणति - “मम वि पायं आनेह", सो वत्तव्वो आयरिए तुमं भणाहि । जतिसो लज्जाए गुरुं न सक्केइ भणिउं, ताहे ते पायपट्ठिता गुरुं विन्नवेंति - एस साधू भणति - "मम पि पायं आनेह" त्ति, किं करेमो त्ति । जं गुरू भणति त करेंति । अह सो पायट्टी सढभावो त्ति गुरुं न विन्नवेति ताहे से पादपट्ठिता तदट्ठाए गुरुं नो विष्णवेंति । “इहर” त्ति - जइ असढभावस्स गुरुं न विन्नवेंति तो मासलहुं ॥ [भा. ४५५३ ] जइ पुण आयरिएहिं, सयमेव पडिस्सुयं हवति तस्स । लक्खणमलक्खणजुत्तं, अतिरेगं जं तु तं तस्स ॥ - "मम वि पाद आनेह "त्ति एवं भण्णमाणं आयरिएण सयमेव सोउं भणितो- “अज्जो ! आनेज्जह से पातं’” । ताहे जं वीसाए उवरिं लब्भति तं लक्खणजुत्तं वा अलक्खणजत्तं वा तं तस्स आभवति, नो तं पायं अन्नेन पादेण विप्परावत्तेयव्वं ।। “बितिओ पंथम्मि दङ्कणं”ति अस्य व्याख्या[भा. ४५५४ ] आसन्ने परभितो, तदट्ठ आगंतु विन्नवेंति गुरुं । तं चैव पेसवेंति व दूरगताणं इमा मेरा ॥ चू- अह वसहीतो निग्गता तो आसन्ने ठिता परेण भणिता - "ममं पि पातं आनेह" त्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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