Book Title: Agam Suttani Satikam Part 17 Nishitha
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
१४
निशीथ-छेदसूत्रम् -३-१४/८६७ दिन्नो, परेण न मत्तगो आसि।आयरिओ भणति - एयं मिच्छपूवणं करेसि॥जतो भण्णति[भा.४५३७] पाणदयखमणकरणे, संघाडऽसती वि कप्पपरिहारी।
खमणासहु एगागी, गेण्हंति तु मत्तए भत्तं ॥ चू- “पाणदय'त्ति बहूणं हिंडंताणं मा आउक्कायादिपाणविराधना भविस्सति ताहे मत्तगे विभत्तं गेण्हसि अन्नसाहुअट्ठाए।अहवा-एगेण संघाडगसाहुणाखमणं कतं, बितिओखमणस्स
असहू, संघाडासतीते पडिग्गहे भत्तं मत्तगेण वा पानगं गेण्हति, अनेन य संघाडगेण सह नो हिंडति, तिण्हं वि कप्पो भवति त्तिखमगो पारणदिने सघाडासतीतेपढमालियं आनंतोपडिगगहे पाणगं मत्तए भत्तं गेण्हति । एवं असहुपुरिसो वि,एगागी वा । “कारणे एवं चेव" एवमादि ॥ [भा.४५३८] गुणनिप्फत्ती बहुगी य, दगमासे होहिति त्ति वियरंति ।
लोभे पसज्जमाणे, वारेति ततो पुणो मत्तं ।। चू-एवंबहू संजमादिगुणनिष्फत्ती, “दगमासे"त्तिवासासुहोहितित्ति तेन अज्जरक्खियसामी वितरति भोगं मत्तगस्स आत्मार्थे । वरिसाकालस्स परतो उडुबद्धे अतिलोभपसंगतो चेव अज्जरक्खियसामिणो पुणो मत्तगपरिभोगं आत्मार्थे वारेंति तम्हा अञ्जरक्खिएहिं मत्तगपरिभोगो अनुन्नातो ॥ मत्तगो पुण[भा.४५३९] थेराणेस वि दिन्नो, ओहोवहि मत्तओ जिनवरेहिं।
आयरियादीणट्ठा, तस्सुवभोगो न इहरा तु॥ चू-थेरकप्पियाण जिनवरेहिं चेव एस मत्तओ ओहोवहिस्स चोद्दसविहस्स मज्झे भणितो, अस्स य परिभोगो अनुण्णातो आयरियादीणऽट्ठाए, “न इहरा तु" नो अप्पणो अट्ठाए त्ति वुत्तं भवति॥ [भा.४५४०] एवं सिद्धं गहणं, आयरियादीण कारणे भोगो।
पाणिदयट्ठवभोगो, बितिओ पुण रक्खितऽजकतो॥ चू-मत्तगस्स सिद्धं गहणं थेरकप्पियाणं, तस्स परिभोगो आयरियादिकारणेहिं जिनेहिं चेव अनुन्नातो, बितियपरिभोगो पानदयादिकाणेहिं आत्मार्थे रक्खियऽज्जेहिं कतो । सो वि इदानं अविरुद्धो चेव ॥ उदुबद्धे निक्कारणा[भा.४५४१] जत्तियमेत्ता वारा, दिनेन आनेति तत्तिया लहुगा।
अट्ठहि दिनेहि सपदं, उडुबद्धे मत्तपरिभोगो॥ चू- मत्तगेण जत्तिए वारे उडुबद्धे पुण आणेति भत्तपानं तत्तिए वारे मासलहू भवति, अभिक्खसेवाए पुण अट्ठमे दिने सपदं पारंचियं भवति॥ [भा.४५४२] जेसिं एसुवदेसो, तित्थगराणं तु कोविता आणा।
चउरो य अनुग्घाया, अह धरणे जे वण्णिया पुव्वं ।। चू-"तित्थगरेहिं मत्तगो नाणुण्णातो"त्ति जेसिं एरिसो उवएसो ते तित्थगराणं आणाकोवं करेंति, आणाकोवे य चउगुरुं पच्छित्तं ।जे य भणंति- “रक्खियऽज्जेहिं दिन्नो' तेसिं पिचउगुरुं जे य न धरेंति मत्तगंतेसिं पि चउगुरुं । अधरेताण जे दोसा अद्धाणगिलाणादिया भणिया ते य आवजंति ॥ इमे य अन्ने य दोसा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 ... 476