Book Title: Agam Suttani Satikam Part 14 Nirayavalika Aadi 10agam payanna
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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देवेन्द्रस्तव-प्रकिर्णकंसूत्रम् ३२ योजनसहनमेकमवगाह्य भवननगराणि। रत्नप्रभायां सर्वाणि एकादश योजनसहस्राणि ॥ अंतो चउरंसा खलु अहियमनोहरसहावरमणिजा।
बाहिरओऽविय वट्टा निम्मलवइरामया सव्वे ।। अन्तश्चतुरस्राणि खलु अधिकमनोहरस्वभावरमणीयानि । बाह्यतोऽपि वृत्तानि निर्मलवज्रमयानि सर्वाणि ।। उक्किन्नंतरफलिहा अभितरओ उ भवणवासीणं।
भवणनगरा विरायंति कणगसुसिलिट्ठपागारा॥ उत्कीर्णान्तरपरिखा अभ्यन्तरतस्तु भवनवासिनाम् । भवननगराणि विराजन्ते सुश्लिष्टकनकप्राकाराः ॥ वरपउमकण्णियामंडियाहिं हिट्ठा सहावल हिं। सोहिंति पइट्ठाणेहिं विविहमणिभत्तिचित्तेहिं ।। ' वरपद्मकर्णिकामण्डिताभिरधः स्वभावलष्टैः। शोभन्ते विविधमणिभक्तिचित्रैः प्रतिष्ठानैः॥ चंदनपट्टिएहि य आसत्तोस्सत्तमल्लदामेहिं ।
दारेहिं पुरवरा ते पडागमालाउरा रम्मा ॥ चन्दनपदस्थितैरासक्तोसक्तमाल्यदामभिद्वारः (शोभन्ते)
तानि पुरवराणि पताकामालातुराणि रम्याणि ॥ अटेव जोयणाइंउविद्धा हुँति ते दुवारवरा।
धूमघडियाउलाई कंचनदामोवणद्धाणि ॥ अष्टौ च योजनान्युद्विद्धानि भवन्ति तानि द्वारवराणि ।
धूपघटिकाकुलानि काञ्चनदामोपनद्धानि ॥ जहिं देवा भवणवई वरतरुणीगीयवाइयरवेणं। निचसुहिया पमुइया गयंपि कालं न याणंति ॥ यत्र देवा भवनपतयो वरतरुणीगीतवादितरवेण । नित्यसुखितः प्रमुदिता गतमपि कालं न जानन्ति॥ चमरे धरणे तह वेणदेव पुण्णे य होइ जलकंते।
अमियगई वेलंबे घोसे हरी अअग्गिसिहे । चमरोधरणस्तथा वेणुदेवः पूर्णश्च भवति जलकान्तः ।
अमितगतिर्वेलम्बो घोषो हरिश्चाग्निशिखः॥ कणगमणिरयणथूभियरम्माइंसवेइयाइंभवणाई।
एएसिं दाहिणओ सेसाणं दाहिणे (उत्तरे)पासे । कनकमणिरत्नस्तूपिकारम्याणि सवेदिकानि भवनानि ।
एतेषां दक्षिणतः शेषाणामुत्तरे पार्वे ॥
मू. (३७)
छा. मू. (३८)
मू. (४०)
छा.
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