Book Title: Agam Suttani Satikam Part 14 Nirayavalika Aadi 10agam payanna
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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३०६
मरणसमाधि-प्रकिर्णकंसूत्रम्
नमो नमो निम्मल देसणस्स पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामिने नमः
३३मरणसमाधि-प्रकिर्णकंसूत्रम्
सच्छायं (दशमं-प्रकिर्णकम्)
मू. (१)
छा.
छा.
(मूलम् + संस्कृत छाया) तिहुयणसरीरिवंदं सप्प (संघ) वयणरयणमंगलं नमिउं ।
समणस्स उत्तमढे मरणविहीसंगहं वुच्छं। त्रिभुवनशरीरिवन्धं सत्प्रवचनरचनामंगलं नत्वा ।
श्रमणस्योत्तमाय मरणविधिसंग्रहं वक्ष्ये ॥ सुणह सुयसारनिहसं ससमयपरसमयवायनिम्मायं।
सीसो समणगुणटुं परिपुच्छइ वायगं कंचि ॥ श्रृणुत श्रुतसारनिकष विसमयपरसमयवादनिष्णातं । श्रमणगुणाढ्यं कंचित् वाचकं शिष्यः परिपृच्छति॥ अभिजाइसत्तविक्कमसुयसीलविमुत्तिखंतिगुणकलियं । ___आयारविणयमद्दवविजाचरणागरमुदारं ।। अभिजातिसत्वविक्रमश्रुतशीलविमुक्तिक्षान्तिगुणकलितं । ___ आचारविनयमार्दवविद्याचरणाकरमुदारं। कित्तीगुणगब्भहरं जसखाणिं तवनिहिं सुयसमिद्धं ।
सीलगणनाणदंसणचरित्तरयणागरं धीरं॥ कीर्त्तिगुणगर्भधरं यशःखानिं तपोनिधिं श्रुतसमिद्धं ।
शीलगुणज्ञानदर्शनचारित्ररत्नाकरं धीरं ।। तिविहं तिकरणसुद्धं मयरहियं दुविहठाण पुणरत्तं।
विनएण कमविसुद्धं चउस्सिरं बारसावत्तं॥ त्रिविधत्रिकरणशुद्धं मदरहितं द्विविधे स्थाने पुना रक्तं (रुष्टं) ।
विनयेन क्रमविशुद्धं चतुरिशरो द्वादशावर्त। दुओणयं आहाजायं एयं काऊण तस्स किइकम्मं । __ भत्तीइ भरियहियओ हरिसवसुभिन्नरोमंचो॥ द्व्यवनतं यथाजातं एतादृशं कृतिकर्म तस्य कृत्वा । भक्त्या भृतहृदयो वर्षवशोद्भिन्नरोमाञ्चः।।
मू. (1)
छा.
मू. (५)
छा.
मू. (६)
छा.
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