Book Title: Agam Suttani Satikam Part 14 Nirayavalika Aadi 10agam payanna
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 392
________________ 151 वर्तमान अणे ४५॥भभi Gyavi भाष्यं क्रम भाष्य انه سه निशीषभाष्य बृहत्कल्पभाष्य व्यवहारभाष्य पञ्चकल्पभाष्य जीतकल्पभाष्य श्लोकप्रमाण| क्रम भाष्य गाथाप्रमाण ७५०० आवश्यकभाष्य * ४८३ ७६०० ओघनियुक्तिभाष्य * ३२२ ६४०० पिण्डनियुक्तिभाष्य * ४६ ३१८५ दशवैकालिकभाष्य * | ३१२५ १०. | उत्तराध्ययनभाष्य (?) ८. » नोंध:(१) निशीष , बृहत्कल्प भने व्यवहारभाष्य न त सङ्घदासगणि डोपानुं ४॥य छे. समा॥ संपानमा निशीष भाष्य तेनी चूर्णि साथे भने बृहत्कल्प तथा व्यवहार भाष्य तेनी-तनी वृत्ति साथे समाविष्ट थथु छ. (२) पञ्चकल्पभाष्य अभा२. आगमसुत्ताणि भाग-३८ भi std . (3) आवश्यकभाष्य भi Dul प्रभा४८3 सभ्यु मा १८3 000 मूळभाष्य ३५ छ भने 300 000 अन्य भाष्यनी छ.४नो समावेश आवश्यक सूत्र-सटीकं भां यो छ. [ विशेषावश्यक भाष्य पूज४ प्रसिध्ध थयु छ ५९ ते समय आवश्यकसूत्र- 6५२नु भाष्य नथी भने अध्य यनो अनुसार नी समग वृत्ति આદિ પેટા વિવરણો તો સાવરક અને ગીત એ બંને ઉપર મળે છે. જેનો અત્રે ઉલ્લેખ અમે કરેલ નથી.] (४) ओघनियुक्ति, पिण्डनियुक्ति , दशवैकालिकभाष्य नो समावेश तेन तेनी वृत्ति भां थयो ४ छे. ५ तेनो त विशेनो 64 भाने मणे नथी. [ओघनियुक्ति 6५२ 3000 RT प्रभारी भाष्यनो से सवा मणे छ.] (५) उत्तराध्ययनभाष्यनी या नियुक्तिमा मणी गयानुं संभणाय छ (?) (s) l शत अंग - उपांग - प्रकीर्णक - चूलिका मे ३५ आगम सूत्रो ७५२नो 5 માગનો ઉલ્લેખ અમારી જાણમાં આવેલ નથી. કોઈક સ્થાને સાક્ષી પાઠ-આદિ १३५ भाष्यगाथा व मणे छे. (७) भाष्यकर्ता तरी भुण्य नाम सङ्घदासगणि वा भणेल छे. तेम४ जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण भने सिद्धसेन गणि नो ५९२५ भणे छे. 32&is भाष्यन। उता અજ્ઞાત જ છે. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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