Book Title: Agam Suttani Satikam Part 06 Bhagvati
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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शतकं-११, वर्गः-, उद्देशकः-९
१३ खत्तिए य सिवभदं च रायाणं आपुच्छइ आपुच्छित्ता सुबहुं लोहीलोहकडाहकडुच्छं जाव भंगं गहायजेइमे गंगाकूलगावाणपत्था तावसाभवंतितंचेवजावतेसिंअंतियं मुंडे भवित्ता दिसापोक्खियतावसत्ताए पव्वइए, पव्वइएऽविय णं समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पइ मे जावजीवाएछटुंतंचेवजावअभिग्गहं अभिगिण्हइ २ पढमंछट्टक्खमणं उवसंपञ्जित्ताणं विहरइ
तए णं से सिवे रायरिसी पढमछट्टक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीए पञ्चोरुहइ आयावणभूमिए पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेवउवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयगं गिण्हइ गिम्हित्ता पुरच्छिमं दिसंपोक्खेइ पुरच्छिमाए दिसाए सोमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवे रायरिसी अभि० २, जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणिय तयाणिय पत्ताणिय पुप्फाणिय फलाणिय बीयाणिय हरियाणि य ताणिअनुजाणउत्ति कट्ट पुरच्छिमं दिसं पसरति पुर०२ जाणि य तत्थ कंदाणि य जव हरियाणि य ताइं गेण्हइ २ किढिणसंकाइयं भरेइ किढि०२ दब्भे य कुसे य समिहाओ य पत्तामोडं च गेण्हेइ २ जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ २ किढिणसंकाइयगं ठवेइ किढि० २ वेदि वड्डेइ २ उवलेवणसंमज्जणं करेइ उ० २ दब्भसगब्भकलसाहत्थगए।
जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छइ गंगामहानदी ओगाहेति २ जलमजणं करेइ २ जलकीडंकरेइ २ जलाभिसेयं करेति २ आयंते चोक्खे परमसुइभूए देवयपितिकयकजे दब्भसगब्भकलसाहत्थगए गंगाओ महानईओ पच्चुत्तरइ २ जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता दब्भेहि य कुसेहि य वालुयाएहि य वेति रएति वेति रएत्ता सरएणं अरिणं महेतिसर०२ अग्गिं पाडेति २ अग्गिं संघुक्केइ २ समिहाकट्ठाइं पक्खिवइ समिहाकट्ठाइंपरिखवित्ता अग्गि उज्जालेइ अग्गिं उज्जालेत्ता-अग्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तंगाइं समादहे । तं०- . .
वृ. 'तेणं कालेण'मित्यादि, ‘महया हिमवंत वन्नओ'त्तिअनेन ‘महयाहिमवंतमहंतमलयमंदरमहिंदसारे'इत्यादि राजवर्णको वाच्य इति सूचितं, तत्र महाहिमवानिव महान् शेषराजापेक्षया तथा मलयः-पर्वतविशेषो मन्दरो-मेरु महेन्द्र:-शकादिर्देवराजस्तद्वत्सार:-प्रधानो यः सतथा, 'सुकुमाल० वन्नओ'त्ति अनेन च 'सुकुमालपाणिपाये'त्यादि राज्ञीवर्णको वाच्य इति सूचितं, 'सुकुमालजहा सूरियकंतेजावपच्चुवेक्खमाणे २ विहरइ'त्ति अस्यायमर्थः-'सुकुमाल-पाणिपाएलक्खणवंजणगुणोववेए' इत्यादिना यथा राजप्रश्नकृताभिधाने ग्रन्थे सूर्यकान्तो राजकुमारः ‘पच्चुवेक्खमाणे २ विहरई'इत्येतदन्तेन वर्णकेन वर्णितस्तथा, ‘पञ्चुवेक्खमाणे २ विहरइ' इत्येतच्चैवमिह सम्बन्धीनीयं ।।
'सेणं सिवभद्दे कुमारे जुवराया याविहोत्था सिवस्स रन्नो रज्जंच रटुं च बलं च वाहणंच कोसं च कोट्ठागारं च पुरं च अंतेउरंच जणवयं च सयमेव पच्चुवेक्खमाणे विहरइत्ति।
'वाणपत्थ'त्ति वने भवा वानी प्रस्थानप्रस्था-अवस्थितिर्वानी प्रस्था येषां ते वानप्रस्थाः, अथवा-"ब्रह्मचारीगहस्थश्च, वानप्रस्थो यतिस्तथा" इतिचत्वारोलोकप्रतीताआश्रमाः,एतेषां चतृतीयाश्रमवर्त्तिनोवानप्रस्थाः, 'होत्तिय'त्ति अग्निहोत्रिकाः ‘पोत्तिय'त्तिवस्त्रधारिणः ‘सोत्तिय'त्ति क्वचित्पाठस्तत्राप्ययमेवार्थः ‘जहा उववाइए'इत्येतस्मादतिदेशादिदं दृश्यं-'कोत्तिया जन्नई थालई हुंव उट्ठादंतुक्खलियाउम्मज्जगा सम्मज्जगा निमज्जगा संपक्खला दक्खिणकूलगा उत्तरकूलगा
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