Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 07
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 8
________________ ____45 श्रागम संशोधन प्रकाशन अंगे कृतज्ञता अने अनुमोदन श्री महावीर परमात्माना शासननी विद्यमानताथी भव्यजीवो सम्यगदर्शन ज्ञान चारित्र रूप मुक्ति मार्ग पामी शके छ, तेमा पण सम्यग्दर्शननी स्थिरता अने सम्यग्चारित्रनी उज्वलतानु कारण सम्यगज्ञान छे, ए सम्यगज्ञाननी साधना ए आत्मानी निर्मलतानु मुख्य कारण छ / 45 आगम आदि सम्यग्ज्ञाननी साधना आजे प्राप्त थाय छे ते परम सौभाग्य छ, अधिकार मुजब तेनी साधनामा उजमाल बनवु ते दरेक कल्याणकामी * आत्मानी फरज छ। . . 45 आगम आदि श्रतसाहित्यनु संशोधन अने संपादन कार्य वि. * सं० 2027 मां शरु कयु अने अत्यारे सं० 2034 मां कार्य सारी रीते आगल . वध्यु छ, 78 हजार श्लोक मूल अने 4-5 हजार श्लोकनु टीकाओनु कार्य अत्यार सुधी संपादित थई प्रगट थई गयेल छ। - आ महान कार्यनो आरम्म राजकोट जयराज प्लोट अने प्रहलाद प्लोटना चातुर्मासमा सं० 2027 मां को हतो अने त्यार बाद सं० 2029 नु मलाड * वेस्ट शेठ देवकरण मुलजीभाई जैन वाडीमा चातुर्मास कयुत्यारथी वेगथी काम * चाल्यु हतुजे आ सं० 2034 मां लगभग पूर्ण थशे। - जिन आगम ए जैन धर्मना प्राण के अने ए जिन वचनथी आत्मकल्याण नो मार्ग चाले छे, एथी जिनवचन जिन आज्ञा ए आराधक माटे प्राण स्वरूप छ, जिन वचन प्रत्येना अविहड आत्मीयभावने धारण करनारा परम उपकारी पूज्यपाद गुरुदेव आचार्य भगवंत श्रीमद्विजयअमृतसूरीश्वरजी महाराजाना अनन्य उपकार वात्सल्य अने गृहण आसेवन शिक्षणना प्रतापे आ आगम संशोधन संपादन कार्यनो प्रारम्भ कार्यनी स्थिरता अने कार्यनी पूर्णाहूति थवा आवी छ, तेओश्री करुणालुनी कृपाज आ कार्यमा कारण छ, एमाथी मने बल प्राप्त थयुछे / गुरुदेवना विरह बाद जेओश्रीए सदा आत्मीय भावे शिष्य तुल्य मानीने, * जिन वचननी स्पष्टता जिन वचननी वफादारी अने श्री जिन वचननी आराधना

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