Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 39
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text]] समं तद्वा। जीवा० १९५१ परिशटितपत्रादयुपभोग-वान बालतपस्वी। प्रज्ञा०४०५) ताला-कंसिकाः। प्रश्न. १५९| पतितपत्राद्युपभोगवान् बालतपस्वी। भग० ५०| तालाचरा-तालादयादिभिः विदयाविशेषैः चरन्ति तावसपल्लि-तापसपल्ली। आव० ३९१| तालाचरा। निशी. १६७आ। तालादानेन प्रेक्षाकारिणः। । तावसा- भिक्षुविशेषः। निशी० ९८ अ। राज०२। ज्ञाता०४०| प्रेक्षाकारी। विपा०६३। ताविया-तापिका। आव०८५४| तालाद्यादि-विद्याविशेषः। निशी. १६७ आ। तावेइ-तापयति अपनीतशीतं करोति। जम्बू० ४६१। तालायर-तालाचरः-तालादानेन प्रेक्षाकारी। औप. ३। निशी०१५। तालाचरा नटाः। बृह. १०३ अ। तालाचरः तालादानेन | तासणं-त्रासनं फेत्कारादिवचनं भयकारि। प्रश्न. १६०| प्रेक्षाकारी दण्डपाशिको वा। औप०७२ तालाचरः प्रेक्षा- तासणओ-त्रासः आकस्मिकं भयं कारिविशेषः। प्रश्न. १४११ अक्रमोत्पन्नशरीरकम्पमनः तालायरा-तालाचराः प्रेक्षाकारिविशेषः। जम्बू. ११४| क्षोभादिलिगितत्कारकत्वात् त्रासनकः। प्रश्न. ५ चारणाः। औघ० २२३। नर्तकचट्टादयः। बृह. २७३। आ। | ताहो- तदा तस्मिन् काले। ओघ. ११५ भडचेडणडादिया। निशी. ३६८ अ। तिता-उल्ला। निशी० ४६अ। भिन्ना क्लिन्ना आर्द्रा। तालिअटे-तालवृन्तं व्यजनविशेषः। दशवै० १५४, २२८॥ दशवै. ९६। जम्बू. १९१| तितिण-सखेदं वचनम्। भग० ९१९। तालिज्जंताणं-ताडनम्। राज०६२ तितिणि-तिंतिणी यत्र तत्र वा स्तोकेऽपि कारणे तालियंट-तालवन्तं-मयूरपिच्छकृतव्यजनमित्यर्थः। करकरायणं। व्यव. २३० अ। आचा० ३४५। तालाभिधानवृक्षपत्रं वृन्तं तत्पत्रच्छोट |तितिणिए-तिन्तिणिकोऽलाभे सति खेदाद् यत् इत्थर्यः। भग० ४६८1 तालवृन्तं-व्यजनकम्। आव० १२२ | किञ्चनाभि-धायी। स्था० ३७४। तालवृन्तं-वीजनकम्। प्रश्न. १६३। तितो-क्लिन्नः। निशी० ८१ आ। तालियंटक-तालवृन्तकं व्यजनविशेषः। प्रश्न० १५२ तिंदुग- एकादशतीर्थङ्करस्य चैत्यवृक्षनाम। सम० १५२। तालु-काकुदम्। जीवा० २७३। काकन्दम्। ज्ञाता० १३८1 तेन्दुकः- त्रीन्द्रियजीवविशेषः। उत्त०६९५ आचा० ३८१ | तिंदुगुज्जाणं-तिन्दुकोद्यानं श्रावस्त्यामुद्यानविशेषः। तालुग्घाडणीए-विद्याविशेषः। निशी० ७६ अ। उत्त. १५३| तालेइ-ताडयति हस्तादिना। भग. १६६। | तिंदुयं-तिन्दुकं तेन्दुरुकीफलम्। दशवै. १७६। प्रज्ञा० तालोदा-तालोदकानि।। बृह. १७३ अ। ३६४। तिन्दुकं श्रीवस्त्यामुद्यानविशेषः। उत्त० ४९८१ ताव- तावत्। स्था० ४९७। तापः-आतापनामकर्मोदया- फलविशेषः। प्रज्ञा० ३७, ३२८1 वनस्पतिविशेषः। भग. द्रविमण्डलानामुष्णः प्रकाशः। जम्बू० ४३३। ८०३ तावखित्तं- तापक्षेत्रं सूर्यातपव्याप्ताकाशखण्डम्। जम्बू. | तिंदुसय- तेन्दूसकः। आव. १८१। ज्ञाता० १८४। ४५३ ति-तृतीया सप्तरात्रिकी। आव०६४७। तावखेत्तपुव्व-तापक्षेत्रपूर्व आदित्योदयमधिकृत्य यत्र तिअं-त्रिकं-कटिभागः। उत्त० ४७४। या पूर्वादिक्। दशवै० ८५ तिउद्दई-त्रुट्यति अपगच्छति। आचा० २९० तावणिज्जं-तापीनयं-तापसहम्। भग० ६७२। तिउड- त्रिकूटनामवक्षस्कारपर्वतः। जम्बू. ३५२ तावण्णत्ता-तस्या इव नीललेश्या इव वर्णो यस्याः सा | तिउडग-त्रिपुटकाः धान्यविशेषः। दशवै. १९३। तवर्णा तद्भावस्तत्ता तदवर्णता। भग० २०५१ | तिउण-त्रिगुणं त्रिःप्रदक्षिणीकृत्य। आव० २३३। तावस-तवेडिओ। दशवै० ३३आ। तापसः-कौशाम्ब्यां | तिउलं-त्रीन् मनः प्रभृतीन्-तुलयति तुलामारोपयति श्रेष्ठिविशेषः। उत्त०९९। तापसः कष्टा-वस्थीकरोतीति त्रितुलम्। प्रश्न. १५६। तोदकः मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [39] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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