Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
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परियाइत्त-पर्यादाय-परिगृह्य। भग० १८८1 | केवलित्वकालस्तमा-श्रीत्यान्तकरभूमिर्या सा। ज्ञाता० परियाइय-पर्यायमतीताः पर्यायातीताः पर्यात्ता वा १५४१ सामस्त्य-गृहीताः कर्मपुद्गलवत्। स्था०६४। पर्यापनं- | परियाय-पर्यायः अवस्था प्रव्रज्यादिलक्षणा। स्था० २०७१ अङ्गप्रत्यङ्गः समन्तादापानम्। भग० ६०४। पर्याप्तम्। पर्यायः-श्रामण्यिः । आचा० २४३। पर्यायः-प्रव्रज्याप्रतिराज० ११३
पत्तिलक्षण। आव० २६९। पर्यायः-प्रव्रज्या सम्यक् परियाइयाइं- पर्याप्तानि जीवेन सर्वावयवैरात्तानि समितया वा पर्यायः। आचा० २०२२ तद्रसादान-द्वारेण। भग० ५६९।
परियायइ-पर्याददाति सामस्त्येनोपादत्ते परियाइयकंडकलावा-विचित्रकाण्डकलापयोगात् निधत्तादिकरोति। भग. २९१। पर्यात्तका-ण्डकलापः। जीवा० २५९।
परियार-परिचारः-प्रवीचारः। प्रज्ञा० ५४९। परिवारः-स्वपरियाइयणय-पर्यादानमङ्गप्रत्यङ्गैः
कपरिवारः। भग० ५०६। परिचारः-वृत्तिः खड्गादिकोशो समन्तात्पा(दादा)नमि-त्यर्थः। सम० १६४।
वा। प्रश्न०१३ परियाए- पर्यायः अवस्था। भग०६७३।
परियारग-परिचरति सेवते स्त्रियमिति परिचारकः। परियाएति-पर्यादत्ते। भग० १५५
स्था० १०० परियागं-पर्यायान् विचित्रपरिणामान्। स्था० ४६६। परियारण-सागारियसेवणं। निशी० ११३अ। परियागते- पर्यायः प्रसवकालक्रमेणागतः पर्यायागतः। परियारणय- शब्दादिविषयोपभोगः। भग०६०४। ज्ञाता०९११
परियारणा- यथायोगं शब्दादिविषयोपभोगः। प्रज्ञा० ५४४१ परियागयं-पर्यागतं। प्रज्ञा० ३२८ पर्यायागतः-पर्यायगतः परिचारणा-देवमैथुनसेवा। स्था० १०६। परिचारणावा सर्वनिष्पन्नतां गतः। ज्ञाता०११६।
कामासेवा। स्था० १७३। आसेवना। आचा० ३३१॥ परियागववत्थणा-पज्जोसवणा। जम्हा
परियारणासई-परिसेणित्थी परिभज्जमाणा जं सई पज्जोसवणादिवसे पव्वाज्जापरियागो व्यपदिश्यते- करेंति। निशी० ११२आ। व्यवस्थाप्यते संखा एत्तियो वरिसा मम
परियारसद्दो-पुरुषेण स्त्रीभज्यमानायं शब्दं करोति स उवट्ठाविस्सत्ति तम्हा परियागवत्थवण्णा। निशी. ३३६ | परि-यारशब्दः। बृह. १७ अ। आ।
परियारिया- पडिभज्जमाणि| निशी. १०९ आ। परियाणति-परिजानति-अनमन्यते। राज०४८। परियारेई-मैथन सेवते। स्था०६श परिचारयति-परिपरियाणाति-परिजानाति-प्रत्यभिजानाति। ज्ञाता० ३४। | भुङ्क्ते। भग० १३२ परियाणामि-ज्ञपरिज्ञया परिज्ञाय प्रत्याख्यानपरिज्ञया | परियारेमाणे- परिचारयन-कामक्रीडां कुर्वन्। भग० १७६| प्रत्या-ख्यामि प्रतिजानामि। आव० ७६१|
परियाल-परिवारः। भग० १६३। परियाणिया-परियायते-गम्यते यैस्तानि परियानानि | परियावज्जण- पर्यापदयते-कोथमायाति। पिण्ड० ९० तान्येव परियानिकानि परियानं वा-गमनं प्रयोजनं येषां | पर्या-पदनं पर्यापत्तिरासेवेतियावत्। स्था० १७४१ तानि परि-यानिकानि
परियावज्जिज्जा-पर्यापोरन्-भवेयुः। आचा० ४०१। यानकारकाभियोगिकपालकादिदेवकृतानि। स्था० ४४०। । | परियावज्जेज्ज-पर्यापयेत जलरूपतया परिणमेत्। परियादिया-विवक्षितं पर्यायमतीताः पर्यायातीताः अनुयो० १६२। पर्यापद्यत-विनश्येत्। भग० २३३। पर्यात्ता वा सामस्त्यगृहीता कर्मपुद्गलवत्। स्था० ६३। परियावण- परितापः-पीडाकरणम्। प्रज्ञा० ४३५। परियानं-तिर्यग्लोकादिवतरणादि। स्था० १४६। परियावणियं- परियापनिका च कालान्तरं यावत् देशान्तर-गमनम्। स्था० ५२८४
स्थितिरित्य-त्थानपरियापनिकं च तत्परिकथयतीति। विविधव्यतिकरपरिगमनम्। भग०६६१।
ज्ञाता०१८९। परियायतकरभमी- पर्यायः तीर्थकरस्य
परियावणिया-परितापनं परितापः-पीडाकरणमित्यर्थः,
रयत
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [३]

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