Book Title: Agam Prakashan Suchi
Author(s): Nirav B Dagli
Publisher: Gitarth Ganga

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Page 12
________________ xi मनोगत परमकल्याणरूप श्री जिनशासन की तारकता अनेक महत्त्वपूर्ण आधारों पर सुस्थित है और उन्हीं में से एक अहम् आधाररूप 'श्री द्वादशांग गणिपिटक' (अर्थात् वर्तमान संदर्भ में समग्र आगम साहित्य) को परापूर्व से जैनाचार्यों ने सुरक्षित एवं संगोपित रखा है । प्रस्तुत तथ्य सुप्रतीत है, अतः इस विषय का विस्तार हम यहाँ नहीं कर रहे हैं । फिर भी एक नम्र निवेदन है कि - शतकों तक चली मुखपाठ परंपरा के पश्चात् अनिवार्यता से किये गये श्रुतलेखन का संदेश यह नहीं है कि 'अनधिकृत हाथों तक यह धरोहर पहुँचे' तो भी दिक्कत नहीं है । - तरह इस प्रकाशनसूची के प्रकाशन का भी संदेश यह नहीं है कि 'अनधिकृत व्यक्ति स्वपर अकल्याण में इसे माध्यम बनायें' तो भी दिक्कत नहीं है । - श्री जिनशासन की श्रेष्ठ तारकता को अपनी आसमानी ऊंचाइयों पर बरकरार रखना यह हमारा सामूहिक परम कर्तव्य है, अतः अपनी कर्तव्यनिष्ठता की साक्षीभूत जागृति यही है कि 'अधिकृत व्यक्ति ही इसे उपयोग में ले और स्व-पर को उपकृत बनायें' ।

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