Book Title: Agam 38A Jiyakappo Chheysutt 05A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाहा-२४ ॥३४॥434 ॥३५/35 ||२६|36 ॥३७॥-37 ॥३८||-38 ॥३९||.39 ||४०11-40 ॥४१/41 ॥४२142 (३४) लेवाडय-परिवरसे अमत्तट्ठोसुक्क सत्रिहीएय इयराए छट्ठ-पत्तं अनुपगं सेस-निसिमत्ते उद्देसिय-चरिम-तिगे कम्पे पासंड-स-घर-मीसेय बायर-पाहुडियाए सपञ्चवायाहडे लोभे अइरं अनंत-निखित्त-पिहिय-साहरिप-मीसयाईसु संजोग-स-इंगाले दुविह-निमित्तेय खमणं तु (३७) कम्मुद्देसिय-मीसे धायाइ-पगासणाइएसुंच पुर-पच्छ-कम्म कुच्छिय-संसत्तालित्त-कर-भत्ते अइरंपरित्त-निक्खित-पिहिय-साहरिय-मीसयाईसु अइमाण-घूम कारण विवञ्जए विहिय मायाम अल्झोयर-कड़-पूइय-मायाऽनंते परंपरगए य मीसानंतानंतरगया इएचे गमासणयं ओह-विभागुद्देसोयगरण-पूईय-ठविय-पागडिए लोउत्तर-परियट्टिय-पमिद्य-परभावकीएय सग्गामाहड-ददर-जइन्नमालोहडोझरे पढमे सहम-तिगिच्छा-संघव-तिग-मक्खिय-दायगो चहए पत्तेय-परंपर-ठविय-पिहिय-पीसे अनंतराईसु पुरिमड्दं संकाए जं संकइ तं समावजे इत्तर-ठविए सुहुमे ससणिद्ध-ससरस्ख-मक्खिए चेव मीस-परंपर-ठवियाइएसुबीएसु याविगई सहसाऽणाभोगेणव जेसु पडिक्कमणमभिहियं तेसु आभोगओत्ति बहुसो-अइपमाणे य निबिगई। धावण-डेवण-संघरिस-गमण-किड्डा-कुहावणाईसु उकुहिगीय-छेलिय-जीवरुयाईसु य चउत्यं तिविहोवहिणो विद्युय-विस्तारियऽपेहियानिवेयणए निव्वीय-पुरिममेगासणाइ सव्वभि चायाम हारिय-यो-उग्गमियानिवेयणादिन्न-भोग-दानेसु आसण-आयाम-चउत्यगाइ सबमि छटुंतु मुहनंतय-रयहरणे फिडिए निव्वीययं चउत्थं च नासिय-हारविए वाजीएण चउत्य-छट्ठाई कालऽखाणाईए निविइयं खपणमेव परिभोगे अविहि-विगिचणियाए भत्ताईणं तु पुरिमड्ढे पाणस्सासंवरणे भूमि-तिगापेहणेय निधिगई सब्बस्सासंवरणे अगहण-मंगे यपुरिमड्ढं एवं चिय सापत्रं तवपडिमाऽभिग्गहाइयाणं पि निच्चीयगाइ पस्खिय-पुरिसाइ-विभागओ नेयं ॥४३॥143 ॥४४||-44 ॥४५145 ||४६/46 ॥४७|47 ॥४८1-48 11४९|49 ॥५01-50 191451 For Private And Personal Use Only

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