Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya Author(s): Sanghdas Gani, Kusumpragya Shramani Publisher: Jain Vishva BharatiPage 12
________________ मंगलवचन आगम के वट-वृक्ष का विस्तार व्याख्या ग्रंथ रूपी शाखाओं से हुआ है। नियुक्ति से लेकर टब्बा और जोड़ तक व्याख्या ग्रंथों की अनेक विधाएं हैं और अनेक रचना शैलियां हैं। इन व्याख्या ग्रंथों में नियुक्ति साहित्य के बाद भाष्य ग्रंथों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बृहत्कल्प, व्यवहार और निशीथ-इन तीनों छेद सूत्रों पर विशाल भाष्य लिखे गए हैं। इनमें व्यवहार भाष्य का प्रकाशन अत्यंत अगम्य शैली में हुआ। उसे सामग्री की सुलभता से अधिक और कुछ नहीं कहा जा सकता। नियुक्ति और भाष्य का मिश्रण, क्रमांक की अव्यवस्था, पाठ की अशुद्धि आदि अनेक समस्याएं रही हैं। पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के वाचना प्रमुखत्व में चार दशक से आगम-संपादन का कार्य अनवरत चल रहा है। इस कालावधि में अनेक आगमों, व्याख्याग्रंथों तथा कोश ग्रंथों का प्रणयन और संपादन हुआ है। उनमें से एक महत्त्वपूर्ण व्याख्या ग्रंथ है व्यवहार भाष्य। इसका संपादन समणी कुसुमप्रज्ञा ने अत्यधिक श्रम और जागरूकता के साथ किया है। संपादन की पृष्ठभूमि में मुनि दुलहराजजी का श्रम अत्यंत प्रखर है। वे व्यक्त की अपेक्षा अव्यक्त को अधिक पंसद करते हैं। हमारी आगम-संपादन की गति मंथर हो सकती है, शोध पूर्ण कार्य की गति बहुत त्वरित हो नहीं सकती, किन्तु उसकी पहुंच मंथर नहीं है, यह आनंदानुभूति का विषय है। इस आनंदानुभूति में पूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद और कार्य में संलग्न साधु-साध्वियों, समणियों का प्रमोदभाव निरन्तर विकसित होता रहे। २२ मई १९६६ जैन विश्व भारती, आचार्य महाप्रज्ञ लाडनूं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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