Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 03
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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१४
॥ अहम् ॥ प्रथमोद्देशकप्रकृतानामनुक्रमः ।
सूत्रम् प्रकृतनाम पत्रम् सूत्रम् प्रकृतनाम
पत्रम् - १-५ प्रलम्बप्रकृतम् २५५ ३०-३१ प्रतिबद्धशय्याप्रकृतम् ७२७
६-९ मासकल्पप्रकृतम् । ३४१ ३२-३३ गाथापतिकुलमध्यवास१०-११ वगडाप्रकृतम् ६११
प्रकृतम्
७३८ १२-१३ आपणगृह-रथ्यामुखा
३४ व्यवशमनप्रकृतम् ७५१ दिप्रकृतम् ६५१ ३५-३६ चारप्रकृतम्
৩০০ १४-१५ अपावृतद्वारोपाश्रयप्रकृतम् ६५९ ३७ वैराज्य-विरुद्धराज्यप्रक१६-१७ घटीमात्रकप्रकृतम्
तम् १८ चिलिमिलिकाप्रकृतम् ६७२ ३८-४१ अवग्रहप्रकृतम् ७८८
१९ दकतीरप्रकृतम् ६७६ ४२-४३ रात्रिभक्तप्रकृतम् ८०१ २०-२१ चित्रकर्मप्रकृतम्
४४ रीत्रिवस्त्रादिग्रहणप्रकृतम् ८३९ २२-२४ सागारिकनिश्राप्रकृतम् ६९१ ४५ हरियाहडियाप्रकृतम् ८४८ २५-२९ सागारिकोपाश्रयप्रकृतम् ६९५ ४६ अध्वप्रकृतम्
४७ सङ्खडिप्रकृतम् १ यद्यपि वृत्तिकृता ३२४९-४२ भाष्यगा- | थाव्याख्यायामेतत्प्रकृतसूत्रं रथ्यामुखापणगृहा
४८-४९ विचारभूमी-विहारभूमिदिसूत्रलेन निर्दिष्टं ( दृश्यतां पत्र ९०६) तथाप्य
प्रकृतम्
८९७ स्माभिरिदं प्रकृतं १२-१३ सूत्र-२२९७-९८- ५० आर्यक्षेत्रप्रकृतम् भाष्यगाथा-तयाख्याप्रामाण्यमधिकृत्य आपणगृह-रथ्यामुखादिप्रकृततयोल्लिखितम् ॥ १ भाष्यकृता एतत् प्रकृतं प्राभृतसूत्रलेन २ एतत्प्रकृताभिधानस्थानेऽस्माभिर्विस्मृल्या अपा
निर्दिष्टम् ( दृश्यतां गाथा ३२४२), चूर्णिकृता पुनः वृतद्वारोपाश्रयप्रकृतम् इति मुद्रितं वर्तते प्राभृतसूत्रसमानार्थकेन अधिकरणसूत्रलेनो. तथापि तत्र आपणगृहरथ्याम
ल्लिखितम् (दृश्यतां पत्र ९०६ टिप्पणी २)॥ इति वाचनीयम् ॥
२ यद्यप्यत्र वस्त्रप्रकृतम् इति मुद्रितं तथाप्यत्र ३ एतत्प्रकृतस्यारम्भः २३२५ भाष्यगाथावृत्तेरन रात्रिवस्त्रादिग्रहणप्रकृतम् इति बोद्धव्यम् ॥ न्तरं सूत्रम् इत्यस्य प्राग् विज्ञेयः । अत्रान्तरे- ३ हरियाहडियाप्रकृतम् इत्यस्मिन् नामनि ॥ आपणगृह-रथ्यामुखादिप्रकृतं समाप्तम् ॥ हताहतिकाप्रकृतम् हरिताहृतिकाप्रकृतम् अपावृतद्वारोपाश्रयप्रकृतम् इति ज्ञेयम् ॥ इत्युभे अपि नानी अन्तर्भवतः ॥
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