Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 03
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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प्रासंगिक निवेदन । इचनी अने पहोलाई २॥ इंचनी छे । प्रति लांबी होई त्रण विभागमा लखाएल छे । एना अंतमा लेखकनी पुष्पिका वगेरे कशुंज नथी । आ प्रति ताडपत्रीय होई तेनी संज्ञा अमे ता० राखी छे । पुस्तक बांधवानी वेकाळजीने परिणाम प्रति वळी गएल छतां तेनी स्थिति एकंदर सारी छे । आ प्रति अमे भंडारनी संरक्षक शेठ-धर्मचंद-अभेचंदनी-पेढी द्वारा मेळवी छ।
द्वितीयखंडनो विभाग उपर जणावेल द्वितीयखंडनी सात प्रतिओनो अमे प्रस्तुत संशोधनमा उपयोग कर्यो छ । आ सात प्रतो पैकी भा० प्रति सिवायनी बधीये प्रतिओमां द्वितीयखंडनी शरुआत मासकल्पप्रकृत पूर्ण थया पछी वगडाप्रकृतथी थाय छे, ज्यारे भा० प्रतिमां द्वितीयखंडनो प्रारंभ मासकल्पप्रकृत पूर्ण थवा पहेलाथी थाय छे (जुओ मुद्रित विभाग २ पृष्ठ ५९३ टिप्पणी १) अने द्वितीयखंडनी समाप्ति आ साते प्रतोमा जुदे जुदे ठेकाणे करवामां आवी छे । त० डे० अने ता० प्रतिमां द्वितीयखंडनी समाप्ति मुद्रित चतुर्थ विभागना पत्र ११९२ मां तृतीय उद्देशना १७ मा सूत्र अने भाष्यगाथा ४४१३ नी टीका पछी थाय छे (जुओ पृ० ११९२ दि०१), मो० ले० प्रतिमां द्वितीयखंडनी समाप्ति मुद्रित चतुर्थ विभागना १०१५ पानामां द्वितीय उद्देशना २० मा सूत्र अने ३३५४ मी गाथानी टीका पछी मूळसूत्रनी व्याख्या पछी थाय छे (जुओ पृ० १०१५ टि० ५), कां० प्रतिमां द्वितीयखंडनी समाप्ति मुद्रित चतुर्थ विभागना पत्र ११९१ मां तृतीय उद्देशना १७ मा सूत्र अने ४४१२ गाथानी अधूरी टीकाए थाय छे (जुओ पत्र ११९१ टि० ३) अने भा० प्रतिमा १२०३ पानामां तृतीय उद्देशना १८ मा सूत्र अने ४४५८ गाथानी अधूरी टीकाए थाय छे (जुओ पृ० १२०३ टि० १)। __ आ प्रमाणे हस्तलिखित प्रतोना लखावनाराओए द्वितीयखंडनी पूर्णता जुदे जुदे ठेकाणे करी छे जे पैकी सामान्यतया त० डे० अने ता० प्रतिना लखावनाराओए द्वितीयखंडनो विभाग एकंदर ठीक पाड्यो गणाय । बाकीना लखावनाराओए जे विभाग पाड्या छे ए केवळ निर्विवेकपणे ज पाड्या छे, जेमां सूत्रने के कोई अधिकारने पूर्ण नथी थवा दीधां एटलं ज नहि पण चालु गाथानी टीकाने पण पूर्ण थवा दीधी नथी । अस्तु गमे तेम हो ते छतां एटली वात चोकस छे के आ ग्रंथना खंडो पाडनाराओए बुद्धिमत्तापूर्वक खंडो पाड्या नथी ।
प्रतिओनी समविषमता _प्रस्तुत तृतीयविभागना संशोधन माटे उपर जणाव्या मुजब द्वितीयखंडनी कुल सात प्रतो एकत्र करवामां आवी छे जे चार वर्गमां वहेंचाई जाय छे । अर्थात् मो० ले० ता० प्रतिनो एक वर्ग छे, त० डे० प्रतिनो वीजो वर्ग छे, भा० त्रीजो वर्ग छे अने कां० चोथो वर्ग छे । आ चारे वर्गनी प्रतिओ एक वीजा वर्गनी प्रतिओ साथे पाठभेदवाळी
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