Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 5
________________ वन्दन जे महापुरुषतुं जीवन शांत सागरनी जेम सदा एकधारी शांतिथी परिपूर्ण छ, शान्तिना इच्छुक MAL तरीके जैन संघमां जेमनु अद्वितीय स्थान अने मान छे, जेमणे प्राचीन जैन ज्ञानभंडारो अने प्राचीन समग्र साहित्यनो जीर्णोद्धार अने पुनरुद्धार करवा-कराववा द्वारा भारतीय प्राचीन साहित्यनी अने ते साथे जैन धर्मनी अपूर्व सेवा करवामां ज जीवननी सार्थकता मानेली हती तेमज जेमनी शीतल छायामां वसी अमे ज्ञानलव प्राप्त करवा उपरांत जैन वाङ्मयनी अल्प-स्वल्प सेवा करवानुं सामर्थ्य, योग्यता अने सौभाग्य मेळवी शक्या छीए; ते शान्तिना अखंड धामसमा, समदर्शी, पवित्र, व्रत-ज्ञानस्थविर, दीर्घजीवी, अनेकानेकगुणविभूषित, प्रातःस्मरणीय, परमगुरुदेव प्रवर्तक श्री १००८ श्री कान्तिविजयजी महाराजश्री ना पवित्र करकमलमा बृहत् कल्पसूत्र ना आ द्वितीय विभागने सादर अर्पण करी अमे कृतकृत्य थइए छीए. . चरणोपासक शिशुओ मुनि चतुरविजय अने मुनि पुण्यविजय

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