Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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प्रासंगिक निवेदन ।
११ गमे त्यारे अने गमे ते कारणे केटलीक वार बहुज फेरफार कयों छ । आ फेरफार केटलीक वार संगत अने ठीक पण होय छे अने केटलीक वार तद्दन साधारण पण होय छे । केटलीक वार नवो फेरफार करतां भूलथी पहेलाना पाठो काढी नाखवा रही गया छे तेवे ठेकाणे नवा-जुना पाटोनुं खीचड़े थतां गोटाळो पण थइ गयो छे । अस्तु ए गमे तेम हो पण एवा पाठो जोतां आपणने खात्री थाय छे के आ जाननो सुधारो वधारो कोइए पाछळी इरादा पूर्वक कर्या छ । कां० प्रति घणी खरी वार भा० प्रतिना पाठभेद साथे अंत सुधी मळती पण रही छे । कां० भा० प्रतिना खास खास पाठभेदोने अमे टिप्पणमां ज नोंध्या छे अने मो० ले० त० डे० प्रतिना पाठोने ज मुख्यत्वे करीने मूळमां राख्या छ । खास करी चाली शके त्यांसुधी मो० ले० प्रतिना पाठोने ज मूळमा राखवा यत्न कयों छे।
प्रस्तुत प्रकाशनना संशोधन माटे नियुक्ति-भाष्य-वृत्तिसहित बृहत्कल्पसूत्र प्रथमखंडनी एकंदर अमे जे छ प्रतो भेगी करी छे तेमां मो० ले, प्रतिनो एक वर्ग छे, त. डे० नो बीजो वर्ग छे, कां० त्रीजो वर्ग छे अने भा० नो चोथो वर्ग छे । आ चारे वर्गमां केटलीये वार एवं वन्युं छे के अमुक उपयोगी पाट अमुक एक ज वर्गमां होय अने वीजा वर्गनी प्रतिओमां ए पाठ सदंतर पड़ी ज गयो होय; आवे स्थळे घणी खरी वार अमे ते ते उपयोगी पाटने A» आवा चिह्नना वचमां मूळमां आपी, कई कई प्रतोमा ए पाठ, नथी अथवा कई प्रतमा ए पाठ छे ए अमे नीचे टिप्पणीमा जणाव्युं छे ।
प्रस्तुत विभागना संशोधनमा तेम ज पाठान्तर वगैरेनी नोंध करवामां अमे गुरु-शिष्ये अति सावधनता राखी छे छतां ए संबंधमां जे स्वलनाओ थई होय ते बदल अमे 'मिथ्यादुष्कृत' दइए छीए । जे महाशयो अमारी स्खलनाओ तरफ अमारं ध्यान खेंचशे तेनो यथायोग्य साभार स्वीकार करीशुं एटलं कही विरमीए छीए ।
निवेदक-गुरु-शिष्य मुनि चतुरविजय-पुण्यविजय
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