Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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१२
बृहत्कल्पसूत्र द्वितीय विभागनो विषयानुक्रम ।
१३
गाथा
पत्र
८३१
२६४
८३२-३८
२६७-७०
८३९-४६
२७०-७२
८४७-४८
२७२
२७२-७५
.
0
८४९-५७ ८४९ ८५० ८५१-५२ ८५३-५७
विषय [गाथा ८२८ टीका-सत्तर प्रकारनां धान्य] क्रोध, मान, माया, लोभ आदि चौद प्रकारना अभ्यन्तर ग्रन्थ- स्वरूप [ टीकामां-मिथ्यात्वना प्रकारो, नयवाद, परसमय अने मिथ्यात्वनी संख्यानी समानता] 'निर्ग्रन्थ' पदनुं स्वरूप [८३४-३५-उपशमश्रेणि अने क्षपकश्रेणिर्नु वर्णन]
३ आमद्वार 'आम'पदना निक्षेपो
४ तालद्वार 'ताल'पदना निक्षेपो
५ प्रलम्बद्वार 'प्रलम्ब'पदना निक्षेपो ताल अने प्रलम्बनो अर्थ मूलप्रलम्ब अने अग्रप्रलम्बनुं स्वरूप 'प्रलम्ब' पद सूत्रमा मूकवाथी उत्पन्न थती शंका अने तेनुं समाधान
६ भिन्नद्वार 'भिन्न' पदना निक्षेपो, द्रव्यभिन्न भावभिन्नपदनी चतुर्भङ्गी अने तेने लगतां प्रायश्चित्तो
प्रलम्बग्रहणने लगतां प्रायश्चित्तो प्रलम्बग्रहणने लगनां प्रायश्चित्तोनी द्वारगाथा प्रलम्बग्रहणने आश्री अन्यत्रग्रहणना प्रकारो
अने तेने लगतां प्रायश्चित्तो। अन्यत्रप्रलम्बग्रहणना अर्थात जे स्थानमां ताड आदिनां वृक्षो होय ते करतां बीजा स्थानमा रहेल प्रलम्बादिने ग्रहण करवाने लगता प्रकारो द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भावने आश्री वस्तीवाळा प्रदेशमा रहेल प्रलम्बादिना ग्रहणने लगतां प्रायश्चित्तो
२७३-७५
८५८-६२
२७५
२७६-१२
८६३-९२३ ८६३ ८६४-८९
२७६-८३
२७६
८६५-७१
२७६-७९
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