Book Title: Agam 35 Bruhatkappo Bieyam Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 17
________________ [१६९] नो कप्पइ निग्गंथीए ठाणुक्कडियासणियाए होत्तए । [१७०] नो कप्पड़ निग्गंथीए नेसज्जियाए होत्तए । [१७१] नो कप्पइ निग्गंथीए वीरासणियाए होत्तए | [१७२] नो कप्पइ निग्गंथीए दंडासणियाए होत्तए | [१७३] नो कप्पइ निग्गंथीए लगंडसाइयाए होत्तए | [१७४] नो कप्पइ निग्गंथीए ओमंथियाए होत्तए । [१७५] नो कप्पइ निग्गंथीए उत्ताणियाए होत्तए | [१७६] नो कप्पड़ निग्गंथीए अंबखुज्जियाए होत्तए | [१७७] नो कप्पइ निग्गंथीए एगपासियाए होत्तए | [१७८] नो कप्पइ निग्गंथीणं आकुंचणपट्टगं धारित्तए वा परिहरित्तए वा । [१७९] कप्पइ निग्गंथाणं आकुंचणट्टगं धारित्तए वा परिहरित्तए वा । [१८०] नो कप्पइ निग्गंथीणं सावस्सयंसि आसनंसि चिहित्तए वा निसीइत्तए वा आसइत्तए वा त्यट्टित्तए वा । [१८१] कप्पइ निग्गंथाणं सावस्सयंसि आसनंसि चिद्वित्तए वा निसीइत्तए वा आसइत्तए वा तुयट्टित्तए वा । [१८२] नो कप्पइ निग्गंथीणं सविसाणंसि पीढंसि वा फलगं सि वा चिद्वित्तए वा, उद्देसो-५ निसीइत्तए वा आसइत्तए वा त्यट्टित्तए वा । [१८३] कप्पइ निग्गंथाणं सविसाणंसि जाव आसइत्तए वा तुयट्टित्तए वा । [१८४] नो कप्पड़ निग्गंथीणं सवेंटयं लाउयं धारित्तए वा परिहरित्तए वा । [१८५] कप्पइ निग्गंथाणं सवेंटयं लाउयं धारित्तए वा परिहरित्तए वा | [१८६] नो कप्पइ निग्गंथाणं सवेंटिया पायसकेसरिया धारित्तए वा परिहरित्तए वा । [१८७] कप्पइ निग्गंथाणं सवेंटिया पायकेसरिया धारित्तए वा परिहरित्तए वा । [१८८] नो कप्पइ निग्गंथीणं दारुदंडयं पायपुंछणं धारित्तए वा परिहरित्तए वा । [१८९] कप्पइ निग्गंथाणं दारुदंडयं पायपुंछणं धारित्तए वा परिहरित्तए वा । [१९०] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अन्नमन्नस्स मोयं आइयत्तए वा आयमित्तए वा नन्नत्थ गाढागाढेहिं रोगायंकेस् । [१९१] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पारियासियस्स आहारस्स जाव तयप्पमाणमेत्तमवि भूइप्पमाणमेत्तमवि बिंदुप्पमाणमेत्तमवि आहारमाहारित्तए, नन्नत्थ आगाढेसु रोगायंकेसु । __ [१९२] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पारियासिएणं आलेवणजाएण गायाई आलिंपित्तए वा विलिंपित्तए वा, नन्नत्थ आगाढेहिं रोगायंकेहिं । [१९३] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पारियासिएणं तेल्लेण वा घएण वा नवनीएण वा वसाए वा गायाई अब्भंगित्तए वा मक्खित्तए वा नन्नत्थ आगाढेहिं रोगायंकेहिं । [दीपरत्नसागर संशोधितः] [16] [३५-बुहत्कप्पो] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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