Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 14
________________ भूमिका कुछ अन्य स्थानों में भी समान गाथाएं मिलती हैं___अनुयोगद्वार आवश्यकनियुक्ति १. १. उद्देसे २. निद्दे से य ३. निग्गमे, १. १. उद्देसे २. निद्देसे य ३. निग्गमे, ४. खेत्त ५. काल ६. पुरिसे य । ४. खित्त ५. काल ६. पुरिसे य । ७. कारण ८. पच्चय ९. लक्खण, ७. कारण ८. पच्चय ९. लक्खण, १०. नए ११. समोयारणा १२. णुमए ॥१॥ १०. नए ११. समोयारणा १२. णुमए ।।१४०।। २. १३. किं १४. कइविहं १५. कस्स १६. कहि, २. १३. किं १४. कइविहं १५. कस्स १६. कहि, १७. केसु १८. कहं १९. केच्चिरं हवइ कालं । १७. केसु १८. कहं १९. केच्चिरं हवइ कालं । २०. कइ २१. संतर २२. मविरहियं २०. कइ २१. संतर २२. मविरहियं २३. भवा २४. गरिस २५. फासण २६. निरुत्ती ॥२॥ २३. भवा २४. गरिस २५. फासण २६. निरुत्ती ॥१४१। ३. समयावलिय-मुहुत्ता, दिवसमहोरत्त-पक्ख-मासा य । ३. समयावलिय-मुहुत्ता, दिवसमहोरत-पक्ख-मासा य । __ संवच्छर-जुग-पलिया, सागर-ओसप्पि-परियट्टा ॥१॥ संवच्छर-जुग-पलिया, सागर-ओसप्पि-परियट्टा ॥६६३।। ४. जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे नियमे तवे । ४. जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे नियमे तवे। तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ।। तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ॥७९७।। ५. जो समो सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य । ५. जो समो सब्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य। तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ।' तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ।।७९८।। ६. नत्थि य से कोइ वेसो, पिओ व सम्वेसु चेव जीवेसु । ६. नत्थि य सि कोड वेसो, पिओ व सव्वेसु चेव जीवेसु । एएण होइ समणो, एसो अन्नो वि पज्जाओ । ४॥ एएण होइ समणो, एसो अन्नो वि पज्जाओ ॥८६॥ ७. तो समणो जइ सुमणो, भावेण य जइ न होइ पावमणो। ७. तो समणो जइ सुमणो, भावेण य जइ न होइ पावमणो। सयणे य जणे य समो, समो य माणावमाणेसु ॥६॥ सयणे य जणे य समो, समो य माणावमाणेसु ।।८६७।। ८. इच्छा मिच्छा तहक्कारो, आवस्सिया य निसीहिया । ८. इच्छा मिच्छा तहाकारो, आवस्सिया य निसीहिया । आपुच्छणा य पडिपुच्छा, छंदणा य निमंतणा ॥१॥ आपुच्छणा य पडिपुच्छा, छंदणा य निमंतणा ॥६६६।। ९. उवसंपया य काले, सामायारी भवे दसविहा उ। ९. उवसंपया य काले, सामायारी भवे दसहा उ । एएसि तु पयाणं, पत्तेय परूवणं वोच्छ ।।६६७।। १०. संतपयपरूवणया दव्वपमाणं च, खेत्त फुसणा य। १०. संतपयपरूवणया दव्वपमाणं च, खेत्त फुसणा य । कालो य अंतरं, भाग भाव अप्पावडं चेव ॥१॥ कालो य अंतरं, भाग भाव अप्पाबहुं चेव ।।८९५।। ११. नायम्मि गिव्हियब्वे, अगिण्हियवम्मि चेव अत्थम्मि। ११. नायम्मि गिहियव्वे, अगिव्हियव्वम्मि चेव अत्थम्मि । जइयव्वमेव इइ जो, उवएसो सो नओ नाम ॥५॥ जइयब्वमेव इइ जो, उवएसो सो नओ नामं ॥१०५४,१६२२।। १२. सब्वेसि पि नयाणं, बहुविहवत्तब्वयं निसामित्ता। १२. सव्वेसि पि नयाणं, बहुविहवत्तव्वयं निसामित्ता। त सब्वनयविसुद्ध, जं चरणगुणढिओ साहू ॥ तं सव्वनयविसुद्धं, जं चरणगुणट्ठिओ साहू ॥१०५५,१६२३॥ अनुयोगद्वार सूत्र में विविध विषयों की चर्चा हुई है ज्ञान के भेद, आवश्यक श्रुतस्कन्ध, सामायिक, उपक्रम, आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता, अर्थाधिकार, समवतार, निक्षेप, अनुगम और नय। काव्यरसों के विश्लेषण को पढते समय लगता है जैसे यह कोई काव्यशास्त्र है । कुप्रावनिक वर्ग में चरक, चीरिक, चर्मखण्डिक, गोवती, भिक्षोण्ड आदि नाम गिनाए गए हैं। पाषण्डी वर्ग (श्रमण सम्प्रदाय) में श्रमण, पाण्डुरांग, भिक्षु, कापालिक, तापस आदि का विवेचन है। कर्मकर वर्ग में तृणहारक, काष्ठहारक, कपड़े के व्यापारी आदि का उल्लेख है । शिल्पजीवी वर्ग में तन्तुवाय, काष्ठकार, छत्रकार, चित्रकार आदि के नाम मिलते हैं। रचनाकार अनुयोगद्वार सूत्र में कहीं भी कर्ता का उल्लेख नहीं है। चूणि और टीका में भी सूत्रकार का नाम निर्देश नहीं है। नन्दीसूत्र की स्थविरावलि में पाठान्तर के रूप में उल्लिखित गाथा है१. इस प्रकार की गाथाएं मूलाचार में भी उपलब्ध है Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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