Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 13
________________ १२ सामान्यतः आगमों का वर्गीकरण इस प्रकार है अंग – १२ उपांग- १२ १. औपपातिक २. राजप्रश्नीय ३. जीवाभिगम १. अचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग ४. समवायांग ५ भगवती ६. ज्ञातधर्मकथा ७ उपासकदशा ५. अन्तकृतदशा ९. अनुपपातका १०. प्रश्नव्याकरण ११. १२. दृष्टिवाद ४. प्रज्ञापना ४. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ६. सूर्यप्रज्ञप्ति ७. चन्द्रप्रज्ञप्ति ८. निरयावलिका ९. कल्पवतंसिका १०. पुष्पिका ११. पुष्पचूलिका १२. मूल - २ १. दसर्वकालिक २. उत्तराध्ययन छेद–४ १. निशीथ २. व्यवहार ३. बृहत्कल्प ४. दशाश्रुतस्कन्ध चूलिकासूत्र -- २ १. अनुयोगद्वार २. नन्दी अणुओगदारा Jain Education International प्रकीर्णक १० चतुःशरण आतुरप्रत्याख्यान भक्तपरिज्ञा संस्तारक दुवैचारिक प्रकीर्णक वर्ग में इन ग्रन्थों के अतिरिक्त और भी बहुत से ग्रन्थ होने चाहिए। क्योंकि भगवान् महावीर के शिष्यों में हजारों प्रकीर्णककार थे। उनकी रचनाएं इसी वर्ग के अन्तर्गत आ सकती हैं, इसलिए अंग, उपांग, मूल, छेद और चूलिकासूत्रों के अतिरिक्त स्थविरों तथा आचार्यों के ग्रन्थों को प्रकीर्णक वर्ग में लेने से इस वर्ग की संख्या निश्चित नहीं हो सकती । अनुयोगद्वार और नन्दी की चूलिका सूत्र के रूप में विशेष प्रसिद्धि नहीं है। पहले इस दोनों ही सूत्रों को प्रकीर्णक वर्ग में गिना जाता था । दशवैकालिक और आचार की चला प्रसिद्ध हैं पर वे स्वतन्त्र आगम नहीं हैं। अनुयोगद्वार और नन्दी को स्वतन्त्र रूप में चूलिकासूत्र माना गया है। चन्द्रक वेश्यक देवेन्द्रस्तव गणिविद्या महाप्रत्याख्यान वीरस्तव इन्हें चूलिकासूत्र मानना उचित भी है क्योंकि चूलिका का अर्थ है अवशिष्ट विषय का वर्णन अथवा वर्णित विषय के व्याख्या सूत्रों का निरूपण । अनुयोगद्वार में पूर्वो के अध्ययन करने की पद्धति का वर्णन तथा विश्लेषण है इसलिए वह पूर्वज्ञान के परिशिष्ट का स्थान ले सकता है। नंदी सूत्र में जो ज्ञान का विश्लेषण किया गया है, वह दुसरे आगमों में उपलब्ध नहीं है इसलिए इसे ज्ञान विषयक चूलिकासूत्र अथवा परिशिष्ट कहा जा सकता है । चूलिकासूत्र चूलिका का अर्थ है चूला, चूड़ा या चोटी, जिसका स्थान सबसे ऊंचा है। मनुष्य के शरीर में चोटी का जितना महत्त्व है। उतना ही महत्त्व आगमों में चूलिका सूत्रों का है। चूलिका सूत्र आगम साहित्य के हृदयस्थानीय अथवा शिरःस्थानीय सूत्र हैं। आगम पुरुष को प्राप्त करने के लिए चूलिका सूत्र का आलम्बन अत्यंत आवश्यक है । For Private & Personal Use Only चूलिका सूत्रों की ऐतिहासिकता का निरूपण करना कठिन है। ऐसा कोई निश्चित प्रमाण नहीं है जिससे हम व्यक्ति और समय के बारे में जान सकें। पर इतना निश्चित है कि यह वर्गीकरण आगमों में नहीं है और उत्तरवर्ती व्याख्या ग्रन्थों में भी नहीं है । संभव है बाद के विद्वानों ने अनुयोगद्वार और नन्दी की विषय-वस्तु के आधार पर इनको चूलिका-सूत्रों की संज्ञा दी हो । किन्तु यह तो अन्वेषणीय ही है कि अनुयोगद्वार और नन्दी का बूलिका-सूत्रों के रूप में निरूपण कब और किसके द्वारा हुआ ? आकार और विषयवस्तु अनुयोगद्वार सूत्र का ग्रन्थाय २१६२ श्लोक तथा ५ अक्षर हैं। इस आगम की रचना बहुलांशतः गद्यमय है। काव्यरसों के उद्धरण पद्यबद्ध हैं तथा बीच-बीच में और भी कुछ स्थलों पर पद्य हैं। पद्यभाग आर्यरक्षित द्वारा रचित है अथवा किसी अन्य ग्रन्थ से उदाहरण के रूप में उद्धृत है—यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। नय की व्याख्या देनेवाली गाथाएं आवश्यक निर्युक्ति में उपलब्ध हैं (द्रष्टव्य सू. ७१५ का टिप्पण) । www.jainelibrary.org

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