Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 36
________________ नंदी २७६ इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अनंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंत संसारकता र वीईवइंसु । इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवयंति । इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अनंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं वीईव इस्संति || १२६. इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कथाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइ । भुवि च भवइ य, भविस्सइ य । धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए rafe fred | से जहानामए पंचत्किाए न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ । भुवि च भवइ य, भविस्सइ य । धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्टिए निच्चे । एवमेव दुवालसंगे गणिपिडगे न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सर । भुवि च भवइ य, भविस्सइ य । धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्टिए निच्चे ।। १२७. से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दव्व णं 'सुयनाणी उवउत्ते" सव्वदव्वाई 'जाणइ पासइ" । खेत्तओ णं 'सुयनाणी उवउत्ते" सव्वं खेत्तं 'जाणइ पासइ * 1 कालओ णं 'सुयनाणी उवउत्ते" सव्वं कालं 'जाणइ पासइ" । भावओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वे भावे 'जाणइ पासइ" । संग्रहणी-गाहा - अक्खर सण्णी सम्म, साइयं खलु सपज्जवसियं च । गमियं अंगपविट्ठ, सत्तवि एए सपविक्खा ||१|| आगम-सत्थग्गहणं, जं बुद्धिगुणेहिं अट्ठहि दिट्ठ । बिति सुयनाणलंभं तं पुब्वविसारया धोरा ॥२॥ सुस्सूसइ पडिपुच्छर, सुणइ गिण्हइ य ईहए यावि' । तत्तो अपोहए वा, घारेइ करेइ वा सम्मं ॥३॥ भूअं हुंकारं वा, बाढक्कार पडिपुच्छ वीमंसा | तत्तो पसंगपारायणं च परिणिट्ट सत्तमए ||४|| १. उवउते सुयवाणी (क, ख ) 1 २. जाणइ न पासइ (हमा, मपा) । ३. उवउत्ते सुयनाणी (क, ख ) 1 ४. जाणइ न पासइ (हपा, मपा) । Jain Education International ५. उवउत्ते सुयनाणी (क, ख ) 1 ६,७. जाणइ न पासइ (हपा, मपा ) ८.विदिट्ठे ( क ) । ६. वावि (क, ख ) 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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