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अभिमत आगम प्रकाशन समिति ब्यावर द्वारा प्रकाशित जीवाजीवाभिगम सूत्र का प्रथम भाग प्राप्त हुआ। प्रस्तुत संस्करण एक विशालकाय संस्करण है। इसका अध्ययन करने पर हार्दिक आनन्दानुभूति हुई।
सर्वप्रथम शुद्ध मूल पाठ है, तत्पश्चात् वृत्ति एवं टीकाओं पर प्राधारित प्रामाणिक व्याख्या की गई है। जिससे पाठक को मूल का स्पष्ट अर्थबोध हो जाता है। इसके अध्ययन से साधारण अध्येता भी द्रव्यानुयोग के गम्भीर रहस्य सुगमता से समझ सकता है । प्रस्तुत संस्करण की अपनी एक विशेषता है । गवेषणात्मक प्रस्तावना और सम्पादक का गहन चिन्तन, आगम-वैदृष्य एवं सम्पादनकौशल सर्वत्र प्रस्फुटित हो रहा है। इस मनोरम उद्यम हेतु हार्दिक वर्धापना स्वीकृत हो।
--डॉ. सुव्रतमुनि शास्त्री, एम० ए० (हिन्दी, संस्कृत)
पी-एच० डी० जैन सभा मतलौडा (हरि०)
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