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आगम सूत्र २४, पयन्नासूत्र-१, 'चतु:शरण'
सूत्र
[२४] चतुःशरण पयन्नासूत्र-१-हिन्दी अनुवाद
सूत्र-१
पाप व्यापार से निवर्तने के समान सामायिक नाम का पहला आवश्यक, चौबीस तीर्थंकर के गुण का उत्कीर्तन करने रूप चउविसत्थओ नामक दूसरा आवश्यक,
गुणवंत गुरु की वंदना समान वंदनक नाम का तीसरा आवश्यक, लगे हुए अतिचार रूप दोष की निन्दा समान प्रतिक्रमण नाम का चौथा आवश्यक,
भाव व्रण यानि आत्मा का लगे भारी दूषण को मिटानेवाला काउस्सग्ग नाम का पाँचवा आवश्यक और गुण को धारण करने समान पच्चक्खाण नाम का छठा आवश्यक निश्चय से कहलाता है। सूत्र-२
इस जिनशासन में सामायिक के द्वारा निश्चय से चारित्र की विशुद्धि की जाती है। वह सावधयोग का त्याग करने से और निरवद्ययोग का सेवन करने से होता है। सूत्र -३
दर्शनाचार की विशुद्धि चउविसत्थओ (लोगस्स) द्वारा की जाती है; वह चौबीस जिन के अति अद्भूत गुण के कीर्तन समान स्तुति के द्वारा होती है। सूत्र -४
ज्ञानादिक गुण, उससे युक्त गुरु महाराज को विधिवत् वंदन करने रूप तीसरे वंदन नाम के आवश्यक द्वारा ज्ञानादिक गुण की विशुद्धि की जाती है। सूत्र -५
ज्ञानादिक की (मूलगुण और उत्तरगुण की) आशातना की निंदा आदि की विधिपूर्वक शुद्धि करना प्रतिक्रमण कहलाता है। सूत्र-६
चारित्रादिक के जिन अतिचार की प्रतिक्रमण के द्वारा शुद्धि न हुई हो उनकी शुद्धि गड्-गुमड़ के ओसड़ समान और क्रमिक आए हए पाँचवे काउस्सग्ग नाम के आवश्यक द्वारा होती है। सूत्र - ७
गुण धारण करने समान पच्चक्खाण नाम के छठे आवश्यक द्वारा तप के अतिचार की शुद्धि होती है और वीर्याचार के अतिचार की शुद्धि सर्व आवश्यक द्वारा की जाती है। सूत्र-८
(१) गज, (२) वृषभ, (३) सिंह, (४) अभिषेक (लक्ष्मी), (५) माला, (६) चन्द्रमा, (७) सूर्य, (८) धजा, (९) कलश, (१०) पद्मसरोवर, (११) सागर, (१२) देवगति में से आए हुए तीर्थंकर की माता विमान और (नर्क में से आए हुए तीर्थंकर की माता) भवन को देखती है, (१३) रत्न का ढेर और (१४) अग्नि, इन चौदह सपने सभी तीर्थंकर की माता वह (तीर्थंकर) गर्भ में आए तब देखती है । सूत्र-९
देवेन्द्रों, चक्रवर्तीओं और मुनीश्वर द्वारा वंदन किए हुए महावीरस्वामी को वन्दन कर के मोक्ष दिलानेवाले चउसरण नाम का अध्ययन मैं कहूँगा।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(चतुःशरण)” आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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