Book Title: Agam 24 Chatushraan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 7
________________ सूत्र आगम सूत्र २४, पयन्नासूत्र-१, 'चतु:शरण' सूत्र-२३ अरिहंत के शरण से होनेवाली कर्म समान मेल की शुद्धि के द्वारा जिसे अति शुद्ध स्वरूप प्रकट हुआ है वैसे सिद्ध परमात्मा के लिए जिन्हें आदर है ऐसा आत्मा झुके हुए मस्तक से विकस्वर कमल की दांडी समान अंजलि जोड़ कर हर्ष सहित (सिद्ध का शरण) कहते हैं। सूत्र - २४ आठ कर्म के क्षय से सिद्ध होनेवाले, स्वाभाविक ज्ञान दर्शन की समृद्धिवाले और फिर जिन्हें सर्व अर्थ की लब्धि सिद्ध हुई है वैसे सिद्ध मुझे शरणरूप हो । सूत्र-२५ तीन भुवन के मस्तक में रहे और परमपद यानि मोक्ष पानेवाले, अचिंत्य बलवाले, मंगलकारी सिद्ध पद में रहे और अनन्त सुख देनेवाले प्रशस्त सिद्ध मुझे शरण हो । सूत्र - २६ राग-द्वेष समान शत्रु को जड़ से उखाड देनेवाले, अमूढ़ लक्ष्यवाले (सदा उपयोगवंत) सयोगी केवलीओं को प्रत्यक्ष दिखनेवाले, स्वाभाविक सुख का अनुभव करनेवाले उत्कृष्ट मोक्षवाले सिद्ध (मुझे) शरणरूप हो । सूत्र - २७ रागादिक शत्रु का तिरस्कार करनेवाले, समग्र ध्यान समान अग्नि द्वारा भवरूपी बीज (कर्म) को जला देनेवाले, योगेश्वर के आश्रय के योग्य और सभी जीव को स्मरण करने लायक सिद्ध मुझे शरणरूप हो । सूत्र - २८ परम आनन्द पानेवाले, गुण के सागर समान, भव समान कंद का सर्वथा नाश करनेवाले, केवल ज्ञान के प्रकाश द्वारा सूर्य और चन्द्र को फीका कर देनेवाले और फिर राग द्वेष आदि द्वन्द्व को नाश करनेवाले सिद्ध मुझे शरणरूप हो। सूत्र - २९ परम ब्रह्म (उत्कृष्ट ज्ञान) को पानेवाले, मोक्ष समान दुर्लभ लाभ को पानेवाले, अनेक प्रकार के समारम्भ से मुक्त, तीन भुवन समान घर को धारण करने में स्तम्भ समान, आरम्भ रहित सिद्ध मुझे शरणरूप हो । सूत्र - ३० सिद्ध के शरण द्वारा नय (ज्ञान) और ब्रह्म के कारणभूत साधु के गुणमें प्रकट होनेवाले अनुरागवाला भव्य प्राणी अपने अति प्रशस्त मस्तक को पृथ्वी पर रखकर इस तरह कहते हैंसूत्र - ३१ जीवलोक (छ जीवनिकाय) के बन्धु, कुगति समान समुद्र के पार को पानेवाले, महा भाग्यशाली और ज्ञानादिक द्वारा मोक्ष सुख को साधनेवाले साधु मुझे शरण हो । सूत्र - ३२ केवलीओ, परमावधिज्ञानवाले, विपुलमति मनःपर्यवज्ञानी श्रुतधर और जिनमत के आचार्य और उपाध्याय ये सब साधु मुझे शरणरूप हो । सूत्र - ३३, ३४ चौदहपूर्वी, दसपूर्वी और नौपूर्वी और फिर जो बारह अंग धारण करनेवाले, ग्यारह अंग धारण करनेवाले, जिनकल्पी. यथालंदी और परिहारविशदि चारित्रवाले साध । क्षीराश्रवलब्धिवाले, मध्याश्रवलब्धिवाले, संभिन्नश्रोतलब्धिवाले, कोष्ठबुद्धिवाले, चारणमुनि, वैक्रियलब्धिवाले और पदानुसारीलब्धिवाले साधु मुझे शरणरूप हो । मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(चतुःशरण)" आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 7 Page 7

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