Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 190
________________ Shri Mahavir Jain Arachana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailashsagarsuri Gyanmandir णाम दुवे देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, से तेणद्वेणं गो०! एवं वुच्चति पुक्खरवरद्दीवे २ जाव निच्चे, पुक्खरवरे णं भंते! दीवे केवइया चंदा पभासिंसु वा०?, एवं पुच्छा, 'चोयालं चंदसयं चउयाल चेव सूरियाण सयो पुक्खवरदीवंभी चरंति एते पभासेंता ॥४२॥ चत्तारि सहस्साई बत्तीसं चेव होति णक्खता। छच्च सया बावत्तर महग्गहा बारह सहस्सा ॥४३॥ छण्ण३३ सयसहस्सा चत्तालीसं भवे सहस्साई। चत्तारि सया पुक्खर तारागणकोडकोडीण॥४४॥ सोभेसु वा०, पुक्खवरदीवस्स बहुमझदेसभाए एत्य णं माणुसुत्तरे नाम पव्वते पं० वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते जे णं पुक्खरवरं दीवं दुहा विभयमाणे २ चिट्ठति, तं० अब्भितरपुक्खरद्धं च बाहिपुक्खरद्धं च, अभितरपुक्खरद्धे णं भंते! केवतियं चक्षवाल० परिक्खेवेणं पं०, गो०! अट्ठ जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं 'कोडी बायालीसा तीसं दोणि य सया अगुणवण्ा। पुक्खरअद्धपरिरओ एवं च मणुस्सखेत्तस्स ॥४५॥से केणटेणं भंते! एवं वुच्चति अभितरपुक्खरद्धे य २१ , गो०! अभितरपुक्खरद्धे णं माणुसुत्तरेणं पव्वतेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, से एएणटेणं गो०! अब्भितरपुक्खरद्धे य २, अदुत्तरं च णं जाव णिच्चे, अभितरपुक्खरद्धे णं केवतिया चंदा,पभासिंसु वा० सा चेव पुच्छ। जाव तारागणकोडकोडीओ?, गो०! 'बावत्तरि च चंदा बावत्तरिमेव दिणकरा दित्ता। पुक्खरवरदीवड्ढे चरंति एते पभासेंता ॥४६॥ तिनि सया छत्तीसा छच्च् सहस्सा महग्गहाणं तुोणक्खत्ताणं तु भवे सोलाई दुवे सहस्साई ॥४७॥ अडयाल सयसहस्सा बावीसं खलु भवे सहस्साई। दोनि सय पुक्खरद्धे तारागणकोडिकोडीणं ॥४८॥ सोभेसु ॥ श्री जीवाजीवाभिगम् ॥ | १८० पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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