Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 230
________________ Shri Mahavir Jain Arachana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir |पं०, सेसेसु देवा, देवीओ स्थि, जाव अच्चुओ गेवेजगदेवा केरिसया विभूसाए ?, गो०! आभरणवसणरहिया०. एवं देवी णत्यि भाणियव्वं, पगतित्था विभूसाए पं०, एवं अणुत्तरावि ॥२१९॥ सोहम्भीसाणेसु देवा के रिसए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणा |विहरंति?, गो०! इट्टा सद्दा इट्टा रूवा जाव फासा. एवं जाव गेवेजा, अणुत्तरोववातियाणं अणुत्तरा सदा जाव अणुत्तरा फासा |॥२२०॥ ठिती सव्वेसिं भाणियव्वा, देवित्ताएवि अणंतरं चयंति चइत्ता जे जहिं गच्छंति तं भाणियव्वं ॥२२१॥ सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु सव्वपाणा सव्वभूया जाव सत्ता पुढवीकाइयत्ताए जाव वणस्सतिकाइयत्ताए देवत्ताए देवित्ताए आसणसयणजावभंडोवगरणत्ताए उववण्णपुव्वा ?, हंता गो०! असई अदुवा अणंतखुत्तो, सेससु कप्पेसु एवं चेव णवरि नो चेव णं देवित्ताए जाव गेवेजगा, अणुत्तरोववातिएसुवि एवं, णो चेव णं देवत्ताए देवित्ताए य. सेत्तं देवा ॥२२२॥ नेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पं० ?, गो०! जह० दस वाससहस्साई उको० तेत्तीसं सागरोवमाई एवं सव्वेसिं पुच्छा, तिरिक्खजोणियाणं जह० अंतोमु० उक्को० तिनि पलिओवमाई, एवं मणुस्साणवि, देवाणं जहा रतियाणं, देवणेरइयाणंजा चेव ठिती सच्चेव संचिट्ठणा, तिरिक्खजोणियस्स जह० अंतोमुहुत्तं उक्को० वणस्सतिकालो. मणुस्से णं भंते ! मणुस्सेति कालतो केवच्चिरं होति ?, गो०! जह० अंतोमुहत्तं उक्को० तिनि पलिओवमाई पुव्वकोडिपुत्तममहियाई, गैरइयमणुस्सदेवाणं अंतरं जह० अंतोमु० उक्को० वणस्सतिकालो, तिरिक्खजोणियस्स अंतरं जह० अंतोमुहुत्तं उदो० सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगं ॥२२३॥ एतेसिं णं भंते! णेरइयाणं जाव देवाण ॥ श्री जीवाजीवाभिगम् ॥ | २२० पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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