Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 11
________________ shostsko. प्रकाशकीय हमारे मार्गदर्शक, प्रेरणा स्रोत, राष्ट्रसन्त गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. फरमाते थे“जिसके काम में कठिनाइयाँ नहीं आती उसे काम करने का आनन्द भी नही मालूम ! काम करने का आनन्द उसे ही आता है, जो हर कठिनाई को साहस के साथ पार कर जाता है ।" उप प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी म. भी ऐसे ही साहसी और संकल्पबली संत हैं, जो हर कठिनाई से जूझना जानते हैं और कठिनाईयों पर विजय पाना भी सीखा है। जब से आप श्री ने सचित्र आगम प्रकाशन का महान कार्य प्रारम्भ किया, इस शुभ काम में अनेक कठिनाईयाँ आईं, समस्याएँ आयीं । बहुत लोगों ने निराशा और हतोत्साह की बातें की। किन्तु आपश्री ने अपना एक ही संकल्प दोहराया, "मुझे मेरे गुरुदेव ने आज्ञा दी है, कि जिनवाणी के प्रचार-प्रसार में अपना जीवन लगा दें। संसार में सच्चे ज्ञान का प्रकाश करने के समान दूसरा कोई काम नहीं है। तब से मैंने यह काम हाथ में लिया है और इसे जीवन भर करते रहना है। जिन्होंने प्रेरणा दी है, आज्ञा दी है वे इसे पूरा करने की शक्ति भी देंगे।" हमें प्रसन्नता है और गौरव भी है कि गुरुदेव श्री अमर मुनि जी के प्रबल पुरुषार्थ और दृढ़ संकल्प बल के सहारे अब तक हमने बत्तीस सूत्रों के प्रकाशन की योजना में लगभग आधे से ज्यादा सत्रह सूत्रों का काम सम्पन्न कर लिया है। अब तक चार मूल सूत्र (उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नन्दी व अनुयोगद्वार ), आचारांग, ज्ञाताधर्मकथा, उपासगदशा, अन्तकृद्दशा, अनुत्तरौपपातिकदशा, रायपसेणिय सूत्र, उववाइय सूत्र, निरयावलिया (पाँच सूत्र ) विपाक श्रुतयों कुल १७ आगमों का कार्य सम्पन्न हो रहा है। तथा आगे भी हमारा कार्य इसी उत्साह के साथ चलता रहेगा, यह विश्वास है । सचित्र आगमों का प्रकाशन देश-विदेश में सर्वत्र प्रशंसा व आदर प्राप्त कर रहा है। जो लोग शास्त्र के नाम से डरते थे वे भी अब इनका पठन-पाठन करने में रुचि ले रहे हैं और पढ़कर प्रसन्नता प्रकट करते हैं । आगमों का गहन भाव व कठिन शब्दों को अंग्रेजी माध्यम से वे लोग बड़ी सरलता के साथ समझ लेते हैं । हम यही चाहते हैं, कि इस जिनवाणी को प्रत्येक व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति भाव पूर्वक पढ़े और पढ़कर जीवन को उच्च आदर्शों की ओर मोड़े। इस शुभ कार्य में गुरुदेव की प्रेरणा और प्रभाव से सहयोगी जुट रहे हैं और जुटते रहेंगे। शुभ भावना पूर्वक किये शुभ कार्य में कभी कोई कमी नहीं आती, इस विश्वास के साथ हम पाठकों के हाथों में यह आगम प्रस्तुत कर रहे हैं । Jain Education International (5) For Private & Personal Use Only महेन्द्रकुमार जैन अध्यक्ष पद्म प्रकाशन www.jainelibrary.org

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