Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
२५०
८.
तहा विमुक्कस्स परिण्णचारिणो, धिईमओ दुक्खखमस्स भिक्खुणो | विसुभई जंसि मलं पुरेकर्ड, समीरियं रुप्पमलं व जोइणा' ।।
भुजंगलय- दिट्ठत-पदं
ε. से हु परिष्णा समयमि वट्टइ, भुजंगमे जुष्णतयं जहा जहे,
समुद्द-विट्ठत पदं
१०. जमाहु ओहं सलिलं अपारगं, अहे य णं परिजाणाहि पंडिए, ११. जहा हि बद्धं इह 'माणवेहिय", अहाता बंधविमो जे विऊ, १२. इमभि लोए 'परए य दोसुवि", से ह णिरालंबणे अप्पइट्ठिए,
१. जोइणो ( अ, घ, ब ) । २. मेहुणा (क, वृ) 1 ३. चए (घ ) ।
Jain Education International
णिराससे विमुच्चइ से
उवरय- मेहुणे' चरे । दुहसेज्ज माहणे ||
महासमुद्दे व भुयाहि दुत्तरं । से हु मुणी अंतकडे त्ति बुच्चइ ॥ जहा य तेसि तु विमोक्ख आहिओ । से हु मुणी अंतकडे त्ति वुच्चइ ॥ ण विज्जइ बंधण जस्स किंचिवि । कलंकली भावपहं विमुच्चइ ||
ग्रन्थ- परिमाण
कुल अक्षर - ६६६१० अनुष्टुप् श्लोक - ३००६, अक्षर १८
४. व ( अ, क, ब ) । ५. माणवेहिं ( अ, क ) । ६. परलोयते सुवि (च) ।
For Private & Personal Use Only
आयारचूला
-fa afa 11
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381