Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
पण्णस्स जाव चिताए मज्जेत्ता जाव एवं
परक्कमे जाव णो
पागाराणि वा जाव दरीओ
पापिहिमा जान आउगंतो
पाणाई जहा पिडेसणाए पावाद जहा पिटेसणाए पसारि
आलावा | पंचमे बहवे समणमाहणा पणिय-गणिय तब से भ वा २ अस्संजए भिक्खुपहियाए बहवे सममणा वत्थेसणाला ओ
पाणाणि वा जाव ववरोवेज्ज
पायं वा जाव इंदिय
पायं वा जाव भेज्ज पिया जाव चाललंय
पुढविकाए जाव तसकाए पुढबीएजाय संताणए पुरिसंतरकड जान आसे वियं
पुरिसंतरकडं जाव पडियाहेजा
पुरिसंतरकडं जाव बहिया णीहडं अण्णयरंसि पुरिसंतरकडे जाव आसेविए
पुरिसंतरकडे जाव चेतेज्जा योवा जायतेजा ज्योदिट्टा नाक जं पुव्ववदिट्ठा जाव णो पेहाए जाव चित्ताचिल्लड फलिहाणि वा जाव सराणि फासिए जाव आणाए
फासिए जाब आराहिए फासुयं जाव पडिगाहेज्जा फासूर्य पहिगाहेग्ना
फासुर्य लाभे संते जाव' पडिगाहेज्जा बहुकंटगं लाभे संते जाव' मो
Jain Education International
२१५०-५६७।१५,२१
१२. प्रत्र 'जाव' शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते ।
३।३४
३७
३।४७
३५७
५।५
६१४- १२
२/७१
२१४६
२७१
११७, १४४
१५।४२
१०१०२५ ३५७ १०
१।२२
५।१३
१०/१०
२६.११,१३
२।१५.१७
२१३०
१।११:२।२३, २४, २५, २७, २८, २१:३१,१३,४६,५।२७
१/६५
३।५६
११.५
१५।५६
१५/७०
११२२,२५,८१,१००, १४६:५।२०, ३०,७२८, ३१
ik
१११०१,१२८५११८
१।१३४
For Private & Personal Use Only
११४२
३।१५
३६
२०४१
३५४
१९२
१।१२- १८,५१५-१३
११८८
2155
१८६
१६
२४१
१।५१
१।१८
५१११
१।१८
१/१८
२६
२।२७
११५६
१६१
२०५२
नि० १७१४१
१५४९
१५३४९
१३५
१।५
१५
११४
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381