Book Title: Acharya Hastimalji ki Darshanik Manyataye Author(s): Sushma Singhvi Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 1
________________ Wwww आचार्य श्री की दार्शनिक मान्यताएँ श्रमण संस्कृति के अमर गायक आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज के जीवन जीने की कला ही उनकी दार्शनिक मान्यताओं का प्रतिबिम्ब थी । इतिहास के मर्मज्ञ प्राचार्य श्री ने इतिवृत्तों के मर्मस्पर्शी दर्शन को जन-जन तक पहुँचा कर चैतन्य उजागर करने का अदभुत् शंखनाद फूंका । सूक्ष्मव्यवहित और विप्रकृष्ट का साक्षात्कार कराने हेतु अपनी व्यापक समग्र दृष्टि, निरावृत्त आग्रह शून्य दृष्टि और संयममयी करुणा के सान्निध्य की दृष्टि के नमित्त से आपने जो दर्शन की धारा प्रवाहित की उसमें मज्जन कर जन-जन प्रह्लादित हुआ; स्थूल से सूक्ष्म की ओर प्रयाण हुआ, आवरण को काटकर स्वाधीन आत्म-दर्शन करने की चेतना जागी और परोक्ष को प्रत्यक्ष करने का पुरुषार्थ जागा । डॉ० सुषमा सिंघवी प्राचार्य श्री ने बृहस्पति, अक्षपाद, गौतम, कपिल, पतञ्जलि, जैमिनी और बादरायण महर्षियों की तरह किसी चार्वाक, वैशेषिक, न्याय, सांख्य, योग, पूर्व मीमांसा, उत्तर मीमांसा ( वेदान्त) दर्शन का प्रणयन नहीं किया तथापि श्रमण परम्परा के वाहक भगवान् बुद्ध और महावीर द्वारा प्ररूपित श्रमण-संस्कृति के मूल दर्शन को जिस प्रकार परवर्ती आचार्यों ने सींच कर जीवित रखा, उसी क्रम में आचार्य श्री ने ज्ञान की कुदाल से प्रावरण हटाकर श्रद्धा के जल से सिंचन कर चारित्र की निगरानी में जैन दर्शन के पादप को सुशोभित किया । गुरुदेव के शब्दों में- साधनाबीज सभी तीर्थंकरों में समान होता है । उनका जीवन अलग-अलग होता है परन्तु अलग-अलग प्रकार का नहीं होता । Jain Educationa International आचार्य श्री की समस्त दार्शनिक मान्यताएँ जैन दर्शन की दार्शनिक मान्यताएँ हैं । दर्शन कैसे जीवन बन गया, इसका श्रद्वितीय उदाहरण आचार्य श्री स्वयं हैं । जो दर्शन पुस्तकों में सिमट कर पुस्तकालय की शोभा बढ़ावे वह कैसा दर्शन ? जो दर्शन अपनी मान्यताओं के आग्रह में वाद-विवाद For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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