Book Title: Acharanga Sutram Purv Bhag
Author(s): Tattvadarshanvijay, 
Publisher: Parampad Prakashan

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Page 16
________________ ३०२ 303 B 9 पांसुवृष्टया [ प्र० ] A १ पुट्ठो व से प्रपुट्ठो वा AS "तिक्साई 30 3 30 3 A 9 एयाई 303 A१९ नृत्तगीनि 303 303 303 B 9 परस्परकथायां गूढ B११ त्विति मन्वानैः सर्वे विज्ञ 303 १४ °मितो गत इति एकत्वभावना' 3०४१ पृथ्वीशकंरावालुकादिषट्त्रिंशा ३०४२ ङ्गारादिभेदात् पञ्चधा 304 A 1⁄2 व्यवस्थापिता इति 304 309 30 G B'गुणान् प्रचिकटयिषुराह A नासेवते च A ९ व्यसो नाभुङ्क्त 309 A 305 A 309 AC बुझए पडिभाणी 'पानकादि कण्डूस्यपनोदं 3098२ पृष्टः सन् प्रतिभाषी सल् 309 B१२ सेवीय से 369 8 ५ सेवइ य भगवं ३० ११ ध्यासित: [प्र० ] ३०८ B११ ततोऽज्ञानावृतदृष्टयो दण्डमुष्टयादिना ३०८ B१२ भगवांस्तु समाधि ३०८ 83 पार्श्वनाथ 30 € ३१० ३१० 320 ३१० 89 एषाश्च दहन्तः A 2 इतिब्रवीमिशब्दो A १० ग्राहंतु [प्र० ] B४ 'चितानि काष्ठानि वा BC 'यभावाच्च तृण" 310BC 'कुक्कुरा:' 3108११ सीत्कुर्वन्ति कथं नु नामैनं श्रमणं कुक्कुराः ३११8१ बोसट्टकाए पणता ३१२ AC याति एवं ३१२८ प्रभितावे । अरु जावइत्य ३१२९१२ प्रादुष्यन्ति पति [प्र० ] 313 Ag ३१३ A १० 313 A१२ मन्युं [ प्र० ] पडिसेने घट्ट मासे य जावयं भगवं । प्रत्थि एगया भगवं 31363 णच्वाणं 313 B9 निदिशति 3१3 BC भगवान्न पीतवान् 318 A कदाचिद् दीर्म° ३१४ B4 मूसियारि वा मार्जारी 394 A ४ प ( व प्र०) क्कसं ति चिर ३१५ B 9 'शमादभिनिवृतः 395 AS "प्रहाणत्वा ३१५ • २ 'वपि प्रयोजन क्रिया [प्र० ] 319 BC विप्पहीण (विप्यमुक्क प्र० ) स्स ३१ A सुप्रसि 319 AF कुश्रुतिसरि 325A 9 'रणोत्थापित' 315 A 9 वेलाविलं [प्र० ] ३१ALO प्रत्यर्थमालम्ब ३ A १२ । टीका परिसमाप्तेति । ग्रन्थप्रमाण ९६६१ । 315B | सत्त (नव? ) सहस्सा पंचय सपाई अहियाई श्रेय णूणाई गंधस्स य रहयाई विहिणा कम्मक्खयट्ठाए ॥ अक्खरमत्ता बिंदू वयणपयं तह य गाह वित्तं च । जं एत्थ ण मे लिहियं तं समयविऊहि खमियन्वं ॥ कृतिः शीलाचार्यस्येति । - ['सम्भात' नगरे विद्यमानायां तालपत्रात्मिकायां प्रतौ ] । टीका परिसमाप्तेति । ['खम्भात' नगरे विद्यमानायां तालपत्रात्मिकाय प्रती तथा प्रन्यास्वपि प्रतिषु ] पाठान्तरम्

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