Book Title: Acharanga Sutram Purv Bhag
Author(s): Tattvadarshanvijay, 
Publisher: Parampad Prakashan

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Page 10
________________ णामे م १०१ AC भावशास्त्र १०. AJएगणामे से बहुणामे वे बहणामे से एक. १८०BC इमा णाती १८.४१० मुमुक्षोरिमा १०२ A1 जति वीरा AAP केवलज्ञानालोकेन कष्ट, तत् शुश्रूषुभिः श्रुतं, २२ ११ बह्वभावनान्तरीयक COA 3 लघुकर्मणां 1०२ ११ जे एग इत्यादि (प्र.) किम्भूता भवेयु. १०२ BP स्थितिविदोषान् A3 गाय तात्पर्यमासेवां (प्र.) १०२ B3 नान्यदेस्यतो A५ प्रलीयमानाः पौन:पुन्येन कृतजन्मादिसन्धानाः ०२ Be 'वीरा' कर्मविदारण 1 28१. सत्त्वानुकम्पनतया 193 B५ पुढो विगिचमाणे एम विगिचई, सबढी १८3Ae णिचये णिविट्ठा 123BE 'बन्धिनमेकं अपयति पृथक्षयान्यचानुपपत्तेः, १८YAS बकुनिकेताः, पूर्वपदस्य (प्र.) किंगुणः पुनः क्षपक १८४A97 तत्य तत्व १८B परिविचिट्ठर 197A3 ततोऽप्यपरं ततोश्यपरमिति १ B५ °स्तत्वात् तदनु० ७५AS त बन्छ १८TB93 परिवितिष्ठति ७५ BT संयम उक्त इति । १८५१ क एवं वदम्तीत्याह १०५BS शानदर्शनतप १८५AY भाषितत्वावेकमेव 194B13 कृतम्"वयवलक्षणनिष्पत्तेदव्य १८५४ समय पत्तेयं पुच्छि 9A1 °धिग्जातीयानामि S823 न चलिष्यन्तीति कृत्वा 968११ द्रव्यतोऽपि निषण्णा १.9A 4 पनिवृत्तिरूपं ૧૯ B ૧ર तथोपस्थिता धर्म १० १7 12 राहगु (शहप्त ) संलय १८.AC दण्डप्रपञ्चोपरते १८. B२ व्रतेश्वरयोगादि (प्र.) १८9 B१० तूष्णीभावं . २०B, 'न चरेत्' नाचरेन्न विदध्यात् (प्र०) 2CCA10 'सकुंडल वा वपणं ण बत्ति' १ce A२ जो उल्लो सो तत्व लग्मती इति । स्यात्-लोके न केचन विद्वांसः येभ्यो २६१ AS पतिरिक्त प्रेक्य (प्र.) १०१ ११ कस्से (से) पप्पाणं (प्र.) १८38५ त्तेहि पलि' 16786 परिविय १८४१२ किमभिसन्धिः स १५A1 सफलत्वमुपलभ्य 'ततः' तस्मात १८५६ संघर परिच्छिद्य १६५AE परिविचिद्विसु १६५BT परिचितस्थिरे (प्र.) १८48" मानमिति तदाह१८4BC नारकस्तर्यग्योन: 269A3 जिणा उरालादी १९८B1 मारस्स अंतो जमो से मारस्स अंतो १०८BR यादीन् प्राणिन tecB५ कुशाग्रोदकबिन्दुमिव २०.AE नादित्याह-(प्र.) २००० संसारे . २०११३ भन्नाणपमाय

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