Book Title: Abhamandal Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Adarsh Sahitya Sangh View full book textPage 2
________________ हमारे शरीर के चारों ओर रश्मियों का एक वलय होता है। वह सूक्ष्म-तरंगों के जाल जैसा या रुई के सूक्ष्म-तंतुओं के व्यूह जैसा होता है। ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं-चारों ओर फैला हुआ होता है। जैसी भावधारा होती है वैसी ही उसकी संरचना हो जाती है। वह एकरूप नहीं होता, बदलता रहता है। निर्मलता, मलिनता, संकोचं और विकोच-ये सारी अवस्थाएं उसमें घटित होती रहती हैं। इसके माध्यम से चेतना के परिवर्तन जाने जा सकते हैं, शरीर और मन के स्तर पर घटित होने वाली घटनाएं जानी जा सकती हैं। स्थूल-शरीर की घटनाएं पहले सूक्ष्म-शरीर में घटित होती हैं। उनका प्रतिबिम्ब आभामंडल पर हो जाता है। इसके अध्ययन से भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का पता लगाया जा सकता है। रोग और मृत्यु एवं स्वास्थ्य और जीवन आदि अनेक तथ्यो के विषय में भविष्यवाणी की जा सकती है। भावधारा (लेश्या) के आधार पर आभामंडल बदलता है और लेश्या-ध्यान के द्वारा आभामंडल को बदलने से भावधारा भी बदल जाती है। इस दृष्टि से लेश्या-ध्यान या चमकते हुए रंगों का ध्यान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हमारी भावधारा जैसी होती है, उसी के अनुरूप मानसिक चिन्तन तथा शारीरिक मुद्राएं और इंगित तथा अंग-संचालन होता है। क्रोध की मुद्रा में रहने वाले व्यक्ति में क्रोध के अवतरण की संभावना बढ़ जाती है। क्षमा की मुद्रा में रहने वाले व्यक्ति के लिए क्षमा की चेतना में जाना सहज हो जाता है। इस भूमिका में लेश्या-ध्यान की उपयोगिता बढ़ जाती है। For Private Personal use only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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