Book Title: Aavashyak Sutram Uttar Bhag
Author(s): Bhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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तपासयमोद्योगः
चतुर्विंशतिस्तव
चूर्णी ॥१३॥
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| मंतादी सिमंति, एवं अत्थावि । आह- जदि एवं तो वरं तित्थगरत्थुतिं चैव करेमो, किं एवट्टाए खडफडाए ?, किंच-पुणोवि
एतप्पभावेण बोधि लभिस्सामो, ततो अण्णं करेस्सामो, इदाणिं पुण न सक्कामो, किल एत्थ भण्णति-लद्धल्लियं च०॥११०९॥ | एत्थ लहिऊणं बोहिं जं कातव्वं तं जदि न काथिसि तदा पुण किर बोधिं लभेत्ता किं करिस्ससित्ति, ता तं दच्छिसि जहतं विम्हलो,
इमं च चुक्किहिसि, दच्छिसित्ति द्रक्ष्यसि, विम्हलात्त हे विन्भला, इमाओवि बाधिो चुक्किाहसि, अण्णाओवि, तओ परिति| णिहिसि, जथा सो जंबुओ मंसपेसि जहितूण मच्छं पत्थतो इमं च अण्णं च चुक्को, अयमभिप्रायः-यदुत ण केवलाओ तित्थगरत्थुतीओ आरोग्गादीणि भवंति, किं तु एसावि णिमित्तं आरोग्गादीणं, तुमं पुण बोहिं लहितूण असदालंबणेहिं पमायंतो इमाओ चुक्किहिसि, पमादपच्चइएहि य कंमेहिं पुणो बोधि दुल्लभा चोल्लगादीहिं दिट्ठतेहिं, अतो अण्णं च चुक्किाहसित्ति । किं च-इह उत्थिताणुट्ठाणपवित्तीए सुभकम्मोदएणं अण्णा बोधी निव्वत्तिज्जति, जथा अत्थेण अत्थो बज्झति, तुमं पुण इमं पमायंतो अण्णं | कतरेण मोल्लेण लम्भिसि ?, लभिहिसीत्यर्थः, स्याद् बुद्धि :-तित्थगरत्थुतीए, तण्ण , जतो अम्हेहिं पुव्वं भणितं जथा न केवलाए तित्थगरत्युतीए एताणि लब्भंति, किंतु तवसंजमुज्जमेण, एत्थ य उज्जमेंतेण सव्वत्थ कतं भवति चेव , भणितं च भट्टारएहिं-चेतिय कुलगणसंघे॥११-६०११११२॥ तवो १२, संजमो १, एत्थ उज्जमितव्वं, तेसिं वयणे ठितण तवसंजममुज्जमतेण तेसिं भत्ती कता भवति, न इतरेण इति । चंदेहिं निम्मलतरा० ॥७॥ चंदादिच्चेहिंतो कहमाधितं पगासंति , चंदातितिचाणं उड्डे अधेय तिरियं च परिमितं खत्तं पगासणे, केवलियनाणलंभो लोगमलोगं पगासेति । सागरवरो-सयंभुरमणो, ततोवि गंभीरतरा, ण तीरंति परीसहोवसग्गादीहिं खोभेतुं । एवंगुणा ते भगवंतो सिद्धिं गता, मे सिद्धा सिद्धिं दिसंतु, एवं तेसिं मह
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॥१३॥
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