Book Title: Aavashyak Sutram Uttar Bhag
Author(s): Bhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 16
________________ लानी संबन्धः वन्दनाध्ययन चूर्णी तीए भत्तीए समुक्कीत्तणा कता ॥ सुत्तफासिया गया, नया तहेव जहा सामागे दोण्णि गाथा, इत्यादि चर्चः॥ चउव्वीसत्थयचुपणी समत्ता, अहवा लोओज्जोयगरचुण्णी आदाणपदेणं ॥ ॥१४॥ अह वंदणगझयणं, चउव्वीसत्थयाणंतरं वंदणगज्झयणं, एतस्स कोमिसंबंधः?, जेहिं सामाइकमुपदिष्टं लेसि समुक्कित्तणा कातव्वति तदणंतरं अरिहसमुक्कित्तणा कता, गणधरादीहिवि एतं पणीतं अतो गणधरआयरियादीणवि बंदणंडू कातव्वंति भण्णति, अहवा सामाइए ठितस्स जथा तित्थगरा पूज्या मान्यान तथा गणधरादीवि, अतस्तदर्थ बंदणगं भण्णति, एवमादिसंबंधेणायातस्स बंदणगज्झयणस्स चत्तारि अणुयोगद्दाराणि उवक्कमादीणि तहेव वण्णेतब्वाणि जाव नामनिप्फको निक्खेवो वंदणगंति, एत्थ यऽत्थाधिगारो गुणवंतस्स गणधरादिस्स पडिवत्ती-चंदणगमिति, कोऽर्थः ?-वदि अभिवादनस्तुत्योः शुमेषु वा अर्थेषु वागादीनां दानं ।। वंदनं चतुविहं, दो गता, दव्ववंदणगं दब्बभतस्स दब्बनिमित्त वा, अण्णउत्थियाण वा,* भाववंदणगं निज्जरहियस्स साधुस्स वंदमाणस्स । तस्स एगहिताणि वंदणगन्ति वा चितिकमंति वा कितिकंमति वा पूजाकंमंति है|वा विणयकमंति वा । तत्थ बंदणए उदाहरणं एगस्स रण्णो पुत्तो सीतलो नाम, सो य निविण्णकामभोगो पब्वइओ, पढतो आयरिओ जातो, तस्स य भगिणी पुष-॥१४॥ दिण्णा अण्णस्स रायाणगस्स, तीसे चत्तारि पुत्ता, सा तेसिं कहतरेसु कहेति, जथा तुम्भं तु मातुलो पव्वइओ, एवं कालो बच्चति। तेचि अण्णदा तथारूवाण घेराण अतिए पब्वइता, चत्तारि बहुसुता जाता, माउलगं वंदना जति, एगमि नगरे सुतो, तत्थ

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