Book Title: Aavashyak Sutram Uttar Bhag
Author(s): Bhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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चतुर्विंश- धम्मो, सो उ पंचविहो-सामाइयचरित्तादि, अहवा खतिमाती दसविहो, एतेण सावगधम्मोऽवि सूइतो,सज्झातो नाम सामाइयमादी
धर्मतीर्थतिस्तव | जाव दुवालसंगं गणिपिडगं । धम्मो सम्मत्तो।
कराणां इदाणं तित्थं प्राविहितनिवर्चनं, तं च दुविहं-दव्वतित्थं भावतित्थं च, दव्वतित्थं मागहमादी य परसमया वा मिच्छत्तदोसेणं
व्याख्या ॥८॥
मोक्खमग्गममाहगा, असाहगत्तेण य मोक्खं न मग्गति तेहिं, एवं कार्याकरणे दव्वतित्थं भवति । तत्थ मागहाइयदव्वतित्थे || निरुत्तगाथा दाहोवसमं०।। ११-२५ ॥ १०७७ ॥ भावतित्थंपि तेहिं निउत्तं-कोधम्मि उ निग्गहिते०॥ ११-२६ ॥ सिद्धं।
अहवा दंसणनाण० ॥११-२८॥१०६०॥ अहवा दव्वतित्थं चउव्विहं-सुओयारं सुउत्तारं ४ भंगा,भावेवि सुओयारं सुउत्तार ४ भंगा, 12 | सरक्खा तव्वनिता बोडिया साधुत्ति जथासंखं ।
इदाणिं करो, सो छविहो, दो गता, दलवकरे गाथा-गोमुहिसुहिपसूणं. ॥११-३०॥१०८२-३॥ कत्थवि विसए ४ गावीओ करं लब्भति, अहवा पडिएण वा अट्ठिएण वा एवं सव्वत्थ विभासा, सीतकरो खेत्तं जं वाविज्जति भोगे वा जो लइज्जति, | अण्णत्थ उस्सारियं अण्णत्थ जोत्तियाओ जंघाओ, सेसं गाथासिद्धं , एते सत्तरस, अट्ठारसमो उप्पत्तिओ, अप्पणियाए इच्छाए जो
उप्पाइज्जति सो उप्पत्तिओ खेत्तकरो, जथा सुकमादि, गामादिसु वा जंमि वा खेत्ति करो वणिज्जति । कालकरो ४मि काले करो अहवा कालेण एच्चिरेणं तुमे दातव्वति विभासा । भावको पसत्थो अपसत्थो य , अपसत्थो -
कलहकरो० ॥ ११-१३ ॥ १०८५ ॥ सिद्धं । पसत्थो लोगो लोगुत्तरो य, अत्थकरो य. ॥११-३४ ।। १०८६॥ | सिद्धं । इदाणिं जिणेत्ति-जितकोहमाणमाया जितलोभा तेण ते जिणा होति । अरिहा हंता रयं हंता अरिहंता
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