Book Title: Aantardwand
Author(s): Parmatmaprakash Bharilla
Publisher: Hukamchand Bharilla Charitable Trust

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Page 32
________________ फार्मूला अपनी ब्याहता स्त्रियों पर भी तो लागू होता है ? पर वे तो समय पाकर अपने सहोदर से बढ़कर हो जाती हैं, अरे ! बढ़कर क्या ? वे ही सबकुछ हो जाती हैं, सहोदर तो अन्य हो जाता है। ____ मैं समझ नहीं पाता कि एक अन्य घर से आई स्त्री जब इस घर में इसतरह घुलमिल जाती है, इस मय हो जाती है, तो फिर यह सेवक क्यों नहीं ? यह भी तो उस कन्या की ही तरह अपना सबकुछ छोड़कर यहाँ आ गया है और जिसप्रकार वर्ष में कुछ दिन के लिए पत्नी मायके हो आती है; वह भी हो आता है। यदि पत्नी विषय-पोषण में निमित्त बनती है तो यह भी कहाँ पीछे है ? फर्क है तो सिर्फ इतना ही न, कि कोई एक इन्द्रिय के भोग में निमित्त बनता है व कोई अन्य इन्द्रिय के। __ यदि कोई फर्क है तो मात्र अपनेपन का, अपनापन महसूस करने का। पर रामू तो इस परिवार के साथ एकमेक ही हो चुका था। उसे तो हमेशा ही इसी परिवार की खुशियों के बीच चहकते देखा गया है व परिवार के गम में गमगीन होते देखा गया है। उसके अपने जीवन में भी कोई ईद या मुहर्रम आई या आया हो ऐसा हम सभी तो कभी महसूस नहीं कर सके। फिर क्यों, हम जैसा खाते-पीते, हमारे साथ ही रहते, इसी हवा में श्वासोच्छ्वास लेते हुए और सुख-दुःख का भागीदार बनते हुए सारा जीवन ही तो बीत गया, तब भी वह बेगाना ही बना रहा? ___ क्या उसके प्रति मेरा; मेरा ही क्या हम सभी का यह उपेक्षाभाव अनन्त क्रोध, अनन्त द्वेष की श्रेणी में नहीं आता ? यदि ऐसा है तो हमने कभी क्यों नहीं सोचा कि इन भावों का फल क्या होगा? ___ अरे लोक में भी खून की सजा खून या आजीवन कारागार होती है। एक खून करो और जीवनभर कारागार में रहकर उसका कर्ज उतारो; फिर हर पल किये गये किसी की संवेदनाओं के खून का मुझे क्या प्रतिफल मिलेगा ? क्या कभी मुझे भी इसीतरह अपना पूरा जीवन झोंककर किसी का कर्ज उतारना होगा? - अन्तर्द्वन्द/20 -

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